बेंगलुरु में भारत के एचआईवी/एड्स से सम्बंधित चिकित्सकों के राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग ले रहे देश और विदेश के वरिष्ठ विशेषज्ञों के अनुसार, एड्स नियंत्रण में प्रशंसनीय प्रगति तो हुई है परन्तु न तो यह 2020 तक 90-90-90 लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त है और न ही यह 2030 तक एड्स समाप्त करने के लिए. एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी की वैश्विक अध्यक्षीय समिति के नवनिर्वाचित सदस्य डॉ ईश्वर गिलाडा ने बताया कि एचआईवी के साथ जीवित लोगों की संख्या को यदि देखें तो दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद, विश्व स्तर पर भारत तीसरे नंबर पर है.
डॉ गिलाडा ने कहा कि 193 देशों के साथ भारत ने 2030 तक एड्स समाप्त और 2020 तक 90-90-90 लक्ष्य पूरा करने का वादा किया है – यह लक्ष्य सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य में ही नहीं शामिल हैं बल्कि भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्यों में भी दोहराए गए हैं. अनेक चुनौतियों के पश्चात् भारत ने एड्स नियंत्रण की दिशा में सराहनीय प्रगति की है परन्तु इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अभी महत्वपूर्ण कार्य शेष है. 90-90-90 एड्स लक्ष्य हैं: 2020 तक 90% एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एचआईवी पॉजिटिव होने की जानकारी हो; इनमें से 90% को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है; और इनमें से 90% लोगों में वायरल लोड नगण्य हो (अन-डीटेक्टेबल).
एड्स कार्यक्रम में ढील आयी तो प्रगति पलट सकती है
डॉ ईश्वर गिलाडा ने चेताया कि अभी तक की अपूर्ण सफलता से हमारे व्यापक एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में ढील नहीं आनी चाहिए वरन जो प्रगति हुई है वह पलट सकती है. भारत में एड्स नियंत्रण एक नाज़ुक मोड़ पर है: 2010-2017 के मध्य नए एचआईवी संक्रमण में 27% गिरावट आई है परन्तु एक साल में 87,580 नए एचआईवी संक्रमण अत्यंत चिंताजनक हैं: हमें एचआईवी संक्रमण को रोकने में बेहतर सफलता चाहिए क्योंकि हर नया संक्रमण हमारे एचआईवी संक्रमण रोकधाम की कमी उजागर करता है जिसपर ध्यान देना आवश्यक है. उसी तरह हमें हर एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति तक एचआईवी जांच पहुंचानी ज़रूरी है जिससे कि सबको अपने पॉजिटिव होने की जानकारी हो, और उन्हें पर्याप्त इलाज विशेषकर कि एंटीरेट्रोवायरल दवा प्राप्त हो रही हो. 2020 तक भारत सरकार को 90-90-90 के लक्ष्य पूरे करने हैं और 26 माह शेष रह गए हैं: हमारी प्रगति इन लक्ष्यों की ओर असंतोषजनक है.
डॉ गिलाडा ने बताया कि भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार, 21.4 लाख अनुमानित एचआईवी पॉजिटिव लोगों में से 77% को अपने एचआईवी संक्रमण की जानकारी है, और इनमें से 56% को 11.81 लाख को एंटीरेट्रोवायरल दवा प्राप्त हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की”टेस्ट एंड ट्रीट” मार्गदर्शिका के बावजूद, अभी तक 23% एचआईवी से संक्रमित लोगों तक जांच नहीं पहुची है, 44% को एंटीरेट्रोवायरल दवा नहीं मिली है. यदि 90-90-90 लक्ष्यों को 2020 तक पूरा करना है तो यह ज़रूरी है कि सभी शोध-प्रमाणित व्यापक एड्स नियंत्रण कार्यक्रम पूरी कार्यसाधकता के साथ सक्रीय रहें और कोई ढील न आये.
विश्व स्वास्थ्य संगठन और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की मार्गनिर्देशिका के अनुसार, हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति की, एंटीरेट्रोवायरल दवा मिलने के पहले साल में 6 और 12 माह पर, वायरल लोड जाँच होनी चाहिए और फिर हर साल एक बार यही जांच होनी चाहिए. भारत में वायरल लोड जांच की उपलब्धता अनेक गुणा बढ़ानी ज़रूरी है जिससे कि हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को यह जाँच प्राप्त हो सके और उसका वायरल लोड नगण्य रहे – तभी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति एक सामान्य और स्वस्थ जीवनयापन कर सकता है. वर्त्तमान में वायरल लोड जांच 10 राष्ट्रीय रिफरेन्स लेबोरेटरी द्वारा की जाती हैं. 2016-2017 में सिर्फ 16,500 एचआईवी पॉजिटिव लोगों को, जो एंटीरेट्रोवायरल दवा ले रहे थे, यह जांच मिल पायी, हालाँकि पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी में 160,000 लोगों को यह जांच मिली.
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के 11वें राष्ट्रीय अधिवेशन (11वां एसीकॉन) के सह-अध्यक्ष डॉ जीडी रविन्द्रन ने बताया कि कर्नाटक में 2.47 लाख एचआईवी से संक्रमित लोग हैं जिनमें से 1.23 लाख महिलाएं हैं. इनमें से 1.55 लाख (62.8%) को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है. 2010-2017 के दौरान कर्नाटक में एड्स-मृत्यु दर में 68% और नए एचआईवी संक्रमण दर में 46% गिरावट आई है. 2017 में 5008 नए एचआईवी संक्रमित लोग चिन्हित हुए जो नि:संदेह चिंताजनक है और एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की कार्यसाधकता बढ़ाने की ओर इशारा करता है.
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के 11वें राष्ट्रीय अधिवेशन (11वां एसीकॉन) के सह-अध्यक्ष डॉ ग्लोरी एलेग्जेंडर ने कहा कि माता-पिता से नवजात शिशु में एचआईवी संक्रमित होने के दर में पहले के मुताबित गिरावट आई है: 2017 में 22,677 एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं में से सिर्फ 13,716 (60%) को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही थी हालाँकि कर्नाटक में 70% महिलाओं को दवा मिल रही थी. यदि माता-पिता से नवजात शिशु में एचआईवी संक्रमण पर पूर्णविराम लगाना है तो इस दिशा में हो रहे प्रयास में अधिक सक्रियता लानी होगी.
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के 11वें राष्ट्रीय अधिवेशन (11वां एसीकॉन) के शैक्षिक साझेदार हैं: भारत सरकार का राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम; संयुक्त राष्ट्र का एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (UNAIDS); मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया; दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी शोध के लिए प्रतिष्ठित “काप्रिसा”, पीपल्स हेल्थ आर्गेनाइजेशन, आशा फाउंडेशन, आदि.
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