लखनऊ। किसी के परिवार में कई बार बच्चा मंदबुद्धि जन्म हुआ हो या फिर किसी बच्चे को मांसपेशियों बनी रही। इसके साथ ही परिवार को ब्लड की कमी बीमारी और हीमोफीलिया से कोई ग्रसित रहा हो, तो इन परिवार की महिलाओं को आनुवांशिक रोग विशेषज्ञ की परामर्श अवश्य लेना चाहिए। यह बात एसजीपीजीआई स्थित मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की विभाग प्रमुख प्रो.शुभा फड़के ने रविवार को एसजीपीजीआई स्थित ऑडिटोरियम में आयोजित सियामकॉन – 2022 के 7वें वार्षिक सम्मेलन में कही।
रविवार को आयोजित इस कार्यशाला में लखनऊ और कानपुर के बाल रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया। कार्यशाला में आनुवांशिक बीमारियों में प्री-प्रेगनेंसी काउंसलिंग और जांचों की गहन जानकारी ली।
प्रो.शुभा फड़के ने बताया कि जिन परिवारों में बच्चों की अचानक मौत हुई हो या फिर किसी भी गंभीर बीमारी से पीड़ित रहे हों। इस प्रकार के बच्चों का इलाज करते समय बाल रोग विशेषज्ञों को पिछली पीढ़ियों की पूरी जानकारी लेकर केस हिस्ट्री लेनी चाहिए, जिससे उस परिवार में आने वाले बच्चे को गंभीर बीमारियों से बचाया जा सके।
डॉ. फड़के ने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के साथ ही बाल रोग विशेषज्ञों और महिला रोग विशेषज्ञों में आनुवांशिक बीमारियों के प्रति जागरुकता लाना था, क्योंकि आम व्यक्ति को आनुवांशिक बीमारियों की जानकारी नहीं होती है। ऐसे में उन चिकित्सकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जो नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं का इलाज करते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ नवजात को देखकर यह तय कर सकते हैं कि आनुवांशिक बीमारियों की जांच करनी है या फिर जेनेटिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी है। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में इलाज के लिए पहुंचने वाले परिवारों में करीब 10 प्रतिशत परिवारों में कोई न कोई स्वास्थ्य संबंधित समस्या जरूर दिखाई पड़ती है। उन्होंने बताया कि लगभग 30 वर्ष से गर्भ में पल रहे बच्चे की प्री-नेटल डाइग्नोसिस की जाती रही है,लेकिन अब जांचों में नयी तकनीक आ गयी है, जिससे बीमारियों का सटीक पता लगाया जा सकता है और उससे बच्चे का बेहतर इलाज हो सकता है।