लखनऊ। पांच वर्ष से छोटे बच्चों को सांस लेने संबंधी दिक्कत को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। श्वसन सम्बधीं दिक्कत के दौरान बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की कम हो सकती है, इससे बच्चे का जीवन मुसीबत में पड़ सकता है। इस दौरान ऑक्सीजन थेरेपी से बच्चों की श्वसन सम्बधीं दिक्कत से तत्काल नियंत्रण पाया जा सकता है। यह बात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. सूर्यकांत ने छोटे बच्चों में ऑक्सीजन की कमी के प्रबंधन के लिए ऑक्सीजन थेरेपी पर दो दिवसीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम में दी।
प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वास्थ्य महानिदेशालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और केजीएमयू के समन्वय से आयोजित किया गया। कार्यक्रम में डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि ऑक्सीजन की कमी बच्चों में एक खतरा बना देती है। बच्चों को इन खतरों से सुरक्षित रखने के लिए डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ को समय-समय पर प्रशिक्षण देना आवश्यक है। ताकि बच्चे के तत्काल हालत को देखकर आक्सीजन की कमी का पता लगा जा सकें आैर ऑक्सीजन थेरेपी दिया जा सके। प्रशिक्षण के बाद थेरेपी से बच्चों की मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण में ऑक्सीजन कितनी मात्रा में देनी है और निगरानी के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के उपकरणों के बारे में जानकारी दी गयी।
डॉ. कोविद शर्मा ने हाइपोक्सिमिया का पता लगाने के संकेतों और तरीकों पर जानकारी। केजीएमयू की डॉ. माला कुमार और पीजीआई की डॉ. पियाली भट्टाचार्य ने बच्चों में प्रीटर्म स्मॉल बेबी इलनेस और निमोनिया की पहचान प्रबंधन पर बताया। डफरिन अस्पताल में बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. सलमान खान ने बताया कि बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो रही है, तो यह लंग में संक्रमण व निमोनिया के कारण से भी होता है। इसकी समय पर पहचान जरूरी है। सही मात्रा व समय पर ऑक्सीजन थेरेपी से बच्चे को तत्काल राहत मिल सकती है।