लखनऊ। देश में न्यूक्लियर मेडिसिन की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। छोटे-छोटे शहरों में सिटी स्कैन मशीने लग रही है। आईसोटोपस के माध्यम से शरीर की छोटी सी छोटी बीमारी की पहचान कर सकते हैं। यह बात मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एसजीपीजीआई) के दो द्विवसीय 32वें न्यूक्लियर मेडिसिन फाउंडेशन डे कार्यक्रम का दीप प्रज्जवलित कर शुभारंभ करते हुए कही।
कार्यक्रम में साइक्लोट्रोन प्रोड्यूस्ड रोडियोस्टोपस: टूल्स, नीड्स एण्ड रोड अहेड विषय पर भी विशेषज्ञ डाक्टरों ने चर्चा की। मुख्य सचिव ने एसजीपीजीआई में न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के 32 साल पूरे होने पर बधाई देते हुये कहा कि दो दिवसीय चर्चा में रोड अहेड विषय सबसे महत्वपूर्ण है। इस चर्चा में सीनियर डॉक्टर, साइंटिस्ट, छात्र-छात्रायें शामिल हो रही हैं। चर्चा से देश की क्या जरूरत है और आगे क्या होने वाला है, विषय पर कई अहम बिन्दु निकलकर आएंगे। जो कि डिपार्टमेंट के लिये ही नहीं बल्कि देश के लिये उपयोगी होंगे।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में सबसे पहला न्यूक्लियर मेडिसिन डिपार्टमेंट एसजीपीजीआई में शुरू किया गया था। पहले एक यूजर थे लेकिन आज बारह-बारह यूजर्स हो गए है। देश में न्यूक्लियर मेडिसिन की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। छोटे-छोटे शहरों में सिटी स्कैन मशीने लग रही है। आईसोटोपस के माध्यम से शरीर की छोटी सी छोटी बीमारी की पहचान कर सकते हैं। आज आईसोटोपस का उपयोग न केवल डायग्नॉस्टिक के लिए हो रहा है, बल्कि इलाज के लिए भी किया जा रहा है। देश में आईसोटोपस की संख्या पहले से ज्यादा बढ़ी है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगभग 38 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। हमारा देश आत्मनिर्भर भारत की ओर आगे बढ़ रहा है, ऐसी स्थिति में मेडिकल उपकरण विदेशों से आयात न करना पड़े, इसके लिये विचार करने की जरूरत है।
कार्यक्रम में एसजीपीजीआई के निदेशक आर के धीमन, बोर्ड आफ रेडियेशन एण्ड आईसोटोप टेक्नोलॉजी के फॉर्मर चीफ एग्जीक्यूटिव डॉ. एन. रामामूर्ति, न्यूक्लियर गेस्ट फैसिलिटी प्रोफेसर एवं एचओडी, डीन समेत अन्य अधिकारीगण आदि मौजूद थे।