मेधावियों को मेडल व डाक्टरों को सम्मानित किया गया
लखनऊ। कार्डियक के गंभीर मरीजों में अब ऑर्टिफिशियल हार्ट जल्द ही प्रत्यारोपित किया जा सकेगा। कानपुर आईआईटी और देश भर के कॉर्डियोलॉजिस्ट ने कृत्रिम हार्ट का निर्माण सफलता पूर्वक कर लिया है। फरवरी या मार्च से जानवरों में ट्रॉयल शुरू होगा। ट्रॉयल में सफलता के बाद अगले दो वर्ष में मनुष्य में प्रत्यारोपण किया जा सकेगा। यह जानकारी कानपुर आईआईटी के निदेशक डॉ. अभय करंदीकर ने शनिवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के 118 वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए दी। सेल्बी हॉल में आयोजित समारोह में मेधावी मेडिकोज को मेडल प्रदान किया गया। इसके अलावा विभिन्न डाक्टरों व अन्य को उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया। माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉक्टर शीतल वर्मा को टेली टेली मेडिसिन क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए पुरस्कृत किया गया।
निदेशक डॉ. अभय करंदीकर ने कहा कि कार्डियक डिजीज तेजी से बढ़ रही है। इलाज के दौरान गंभीर मरीजों को बड़ी संख्या में हार्ट प्रत्यारोपण की आवश्यकता बतायी जा रही है। मरीजों की दिक्कतों को कम करने के लिए ऑर्टिफिशियल हार्ट तैयार किया जा रहा है। इसमें दस वैज्ञानिक व डॉक्टरों की टीम ने ऑर्टिफिशियल हार्ट तैयार भी कर लिया है। कुछ कार्य शेष बचा है जो कि जल्द ही पूरी हो जाएंगी।
उन्होंने बताया कि फरवरी-मार्च से जानवरों पर इसका ट्रॉयल शुरू किया जाएगा। ट्रॉयल में सफलता मिलने के बाद दो वर्ष के भीतर मरीजों पर प्रत्यारोपण शुरू होगा। उन्होंने कहा कि दिल का मुख्य काम शरीर के दूसरे अंगों को खून पहुंचाना है। यह एक पंप की तरह काम करता है। इसको आधार मानकर ऑर्टिफिशियल हार्ट तैयार किया गया है।
डॉ. अभय ने कहा कि डॉक्टर और वैज्ञानिक मिलकर इलाज में प्रयोग होने वाले उपकरण व इम्प्लांट तैयार करें। अभी भी भारत 80 प्रतिशत उपकरण व इम्प्लांट विदेशों से आयात करता है। सिर्फ 20 प्रतिशत उपकरण व इम्प्लांट यहां तैयार हो रहे हैं। सबसे ज्यादा हार्ट के मरीजों के इम्प्लांट व स्टंट का आयात किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना पहले भारत में वेंटिलेटर नहीं बनते थे। कोरोना संक्रमितों की जिंदगी बचाने के लिए भारतीय वैज्ञानिक व डॉक्टरों ने मात्र 90 दिन में वेंटिलेटर तैयार कर दिया। विदेशी वेंटिलेटर 10 से 12 लाख रुपये में आ रहा है, जबकि भारतीय वेंटिलेटर महज ढाई लाख रुपये में तैयार हो रहा है। उन्होंने कहा कि यहां डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ की खासी कमी है। आबादी व भौगोलिक परिस्थितियों से देखा जाए तो डॉक्टर-स्टाफ का संकट रहेगा। ऐसे में टेक्नोलॉजी से चिकित्सा व्यवस्था को जोड़ने की आवश्यकता है। ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ई फार्मेसी, टेलीमेडिसिन को बढ़ावा मिलना चाहिए। इसे 5जी व 6जी से जोड़ने की जरूरत है।
केजीएमयू मानसिक स्वास्थ्य विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. प्रभात सिठोले ने कहा कि नए डॉक्टर अध्ययन करने के साथ ही सीनियर के कामकाज के तरीके को देखना है। मरीजों से संवाद कर उनका विश्वास को जीतें। डॉ. प्रभात ने कहा कि गुरुदक्षिणा बेहतर डॉक्टर बनकर ही चुकाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि कर्मचारी किसी भी अस्पताल की रीढ़ हैं। अस्पताल की तरक्की में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
केजीएमयू प्रतिकुलपति डॉ. विनीत शर्मा ने कहा कि डॉक्टर बनने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। इलाज में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने वर्ष भर का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। इस मौके पर डॉ. पुनीता मानिक,डा. एसपी जायवार, डॉ. सुजाता देव, डॉ. सुधीर सिंह, डॉ. सौमेंद्र विक्रम सिंह, डॉ. तूलिका चन्द्रा, डॉ. अमिता पांडेय समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।