टायलेट सीट पर बैठ कर आप करते है यह,हो सकती जटिल यह जटिल बीमारी

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लखनऊ। भागती दौड़ती जिंदगी में लोगों के पास वक्त बहुत कम है। काफी संख्या में लोगों में टॉयलेट में मोबाइल देखने व अखबार पढ़ने की आदत शामिल है। अगर यह है तो इसे बदलना स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। इस आदत से पाइल्स का खतरा 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

यह जानकारी किंग चिकित्सा विश्वविद्यालय के जनरल सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सर्जन डॉ. अरशद अहमद ने अटल बिहारी वाजपेई साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में एसोसिएशन ऑफ सर्जन ऑफ इंडिया की उप्र शाखा की तरफ से यूपी एएसआईकॉन-22 के दूसरे दिन दी। कार्यशाला में अन्य विशेषज्ञों ने जानकारी साझा की।
डॉ. अरशद ने कहा कि पहले लोग इंडियन टॉयलेट में लोग ज्यादा देर बैठ नहीं पाते थे, लेकिन देखा जाए , तो पेट के लिहाज से इंडियन टॉयलेट बेहतर हैं, क्योंकि उसमें पेट का भाग घुटनों से दबता है। इससे पेट के ठीक से साफ होने की संभावना ज्यादा होती है। अगर देखा जाए तो वेस्टर्न टॉयलेट में लोग आराम से बैठते हैं। इस टॉयलेट में बैठकर मोबाइल देखते रहते है आैर अखबार तक पढ़ते हैं। आमतौर पर टॉयलेट में पांच से सात मिनट ही बैठना चाहिए। ज्यादा देर टॉयलेट में बैठने से मांसपेसियों पर जोर पड़ने से उनके कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि मैदा या उससे बनी वस्तुओं का सेवन पेट के लिए सही नही है। फिर भी ज्यादातर लोग फास्टफूड पसंद कर रहे हैं। इससे पाचन क्षमता खराब हो रही है। इससे पाइल्स का खतरा बढ़ जाता है। पाइल्स से बचने के लिए अधिक से अधिक फाइवर युक्त भोजन करना चाहिए। हरी सब्जियां, रेशेदार फल, मोटा अनाज फायदेमंद है। उन्होंने बताया कि 80 प्रतिशत पाइल्स मरीजों का दवाओं से इलाज संभव है। सिर्फ 20 प्रतिशत को सर्जरी करने की आवश्यकता होती है। इस मौके पर केजीएमयू जनरल सर्जरी विभाग से रिटायर डॉ. विनोद जैन को सम्मानित किया गया।

 

 

 

आगरा के यूरोलॉजिस्ट डा. प्रशांत ने बताया कि किडनी स्टोन की सर्जरी के लिए चीरा-टांका लगाने की आवश्यकता नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

उन्होंने बताया कि रेट्रोग्रेट इंट्रा रीनल सर्जरी (आरआईआरएस) तकनीक से चीरा लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस तकनीक में पेशाब के रास्ते में यूरोटोस्कोप डालकर लेजर से किडनी को पथरी तोड़ देते हैं। इसमें मरीज दो-तीन दिन में चलने-फिरने लगता है। जबकि पहले सर्जरी के 15-20 दिनों तक मरीज को आराम करने की सलाह दी जाती थी।

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