दमा –
दमा के मरीजों में साँस फूलने की समस्या बारिश में बढ़ जाती है श्वांस नलियों में सूजन आने के कारण सांस लेने में परेशानी होने लगती है इसके प्रमुख लक्षण जैसे कि खाॅसी, सांस फूलना, सांस लेते समय गले से सीटी बजने जैसी आवाज सुनाई देना, बार-बार सर्दी जुकाम होना आदि। इसके नियंत्रण के लिए इनहेलर का उपयोग नियमित रूप से करना चाहिए।
एलर्जिक राइनाइटिस –
बारिश के मौसम मे यह नाक से जुड़ी एक आम बीमारी है जिसमे लगातार छीकें आना, नाक से पानी गिरना, नाक में लालिमा युक्त सूजन और नाक बंद रहती है। यह समस्या पाँच से सात दिनों तक बनी रह सकती है। दवाओं व नाक के स्प्रें के द्वारा इस बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है।
अर्टीकेरिया –
यह एक त्वचा संबंधित रोग है। इसको आम भाशा मे पित्ती उभरना या ददोरे कहते है। बरसात के मौसम मे फफूंद जनित .एलर्जेन्स की मात्रा में इजाफा हो जाता है जिससे इन एलर्जेन्स के प्रति संवेदनषील लोगों मे अर्टीकेरिया हो सकता है। इस रोग में त्वचा पर हाथ पैर, पेट और पीठ मे लाल खुजली युक्त ददोरे पड़ जाते है। इससे बचाव के लिए नमी से दूरी रखनी चाहिए, इसके अलावा कपड़ो, बिस्तर और सोफा जैसे फर्नीचर को साफ व नमी रहित रखना चाहिए।
खाद्य पदार्थो से एलर्जी –
इस तरह की एलर्जी में हमारा प्रतिरक्षा तंत्र में भोजन में षामिल किसी खास प्रोटीन के प्रति अतिसंवेदनषीलता प्रकट करता है। इस प्रकार के खाने की थोड़ी सी मात्रा खाने से एलर्जी के लक्षण प्रकट होने लगते है। खाद्य एलर्जी का पता आमतौर कम उम्र में ही लग जाता है पर इसके कईे लक्षण किषोरावस्था या वयस्क होने तक स्पष्ट रूप से सामने आ पाते है। कुछ खास खाद्य एलर्जेन्स जैसे दूध, अण्डे, मछली तथा अन्य मांसाहारी भोजन, सोया, प्रिजर्वेटिव्स तथा फास्टफूड और गेंहू भी प्रमुख है। फूड इनटाॅलरेन्स और फूड एलर्जी में एक विशिष्ट अन्तर यह होता है कि फूड एलर्जी में प्रतिरक्षा तंत्र एक अनावष्यक प्रतिक्रिया प्रकट करता है जो कि उस खाद्य पदार्थ में षामिल किसी खास प्रोटीन के कारण होती है। दूसरी ओर फूड इनटाॅलरेन्स किसी पाचक एन्जाइम की कमी के कारण होता है। इनके लक्षण समान हो सकते है किन्तु इनके लक्षणों के प्रकट होने के कारण अलग-अलग होते है।
त्वचा संक्रमण –
बारिश के मौसम में त्वचा संक्रमण लम्बे समय तक गीले कपड़े पहनने और बार-बार भीगने के कारण से होता है शरीर के नम स्थानों में संक्रमण अधिक होता है। जिसमें प्रमुख है फोडे़, फुन्सी, दाद, खुजली, जलन, फफोले, आदि। इसके रोकथाम के लिए सूखे और सूती के कपडे़ पहनने चाहिए। नैलाॅन, पाॅलिस्टर से बने वस्त्र न पहने, त्वचा को सूखा रखे व ज्यादा समय तक कपड़े को गीला न रहने दे।
आँखो का संक्रमण (कन्जक्टीवाइटिस) –
इस रोग को हम सामान्य भाषा में “आँख आना“ कहते हैे। इसके प्रमुख लक्षण है आँखो का लाल होना, आँखो में खुजली व पानी आना , आँखो मे दर्द होना , आँखो से धुधला दिखाई देना और आँखो मे मैल जमने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। यह रोग वायरस और बैक्टीरियाॅ के अलावा धूल, धुआॅ, मिट्टी, केमिकल और शैम्पू , इत्यादि के एलर्जी के कारण भी हो सकता है। मरीज को चिकित्सक की सलाह पर दवा और ड्राप देना चाहिए और अपना संक्रमण दूसरे व्यक्ति को न हो इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए। इसकी रोक थाम के लिए चार से पाँच बार स्वच्छ पानी से आँख धुलें व काला चश्मा लगाएं ।