कथक प्राचीन नृत्य है और कभी इसे ईश्वर को प्रसन्न और उपासना करने के लिए मंदिरों में किया जाता था। आठ शास्त्रीय नृत्यों में कथक को सबसे पुराना नृत्य माना जाता है। इस नृत्य को ‘नटवरी नृत्य’ के नाम से भी जाना जाता है। शब्द कथक का उद्भव ‘कथा’ से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कहानी कहना। पुराने समय में कथा वाचक गानों के रूप में इसे बोलते और अपनी कथा को एक नया रूप देने के लिए नृत्य करते। 15वीं शताब्दी में इस नृत्य परम्परा में मुगल नृत्य और संगीत के कारण बड़ा परिवर्तन आया। 16वीं शताब्दी के अंत तक कसे हुए चूड़ीदार पायजामे को कथक नृत्य की वेशभूषा मान लिया गया।
कथक नृत्य के चार प्रमुख घराने हैं –
- जयपुर घराना,
- लखनऊ घराना,
- बनारस घराना
- रायगढ़ घराना।
मुगल काल और फिर नवाबी दौर में यह मंदिरों से निकलकर महलों तक पहुंच गया। खास तौर से लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने नृत्य की इस विधा को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। नवाब मीर जाफर अब्दुल्लाह बताते हैं कि वाजिद अली शाह ने लखनऊ में परीखाना तामीर कराया था। वहां उस्ताद कथक की तालीम दिया करते थे। नवाब वाजिद अली शाह खुद कथक के अच्छे जानकार थे। अब हालात बदल गए हैं। लखनऊ में ही यह नृत्य बेगाना हो चला है।
शास्त्रीय नृत्य संगीत का हाल किसी से भी छुपा नहीं है। पश्चिमी सभ्यता की नकल के फेर में कथक कहीं खो सा गया है। कला प्रेमियों का मानना है कि अपनी संस्कृति और शास्त्रीय नृत्य संगीत के लिए लोगों को जागरूक किया जाए। कथक के जानकारों और कथक कृथक को सरकारी विभागों में आरक्षण दिया जाए। शहर में संस्कृतिक कार्यकमों को बढ़ावा दिया जाए।
शहर में कुछ लोग हैं जो कथक को आगे बढ़ाने और लोगों को इसे सिखाने का काम कर रहे हैं। आज भी शहर में कथक अकादमी, भारतेंदु नाटक आकादमी और संगीत नाटक अकादमी जैसी तमाम संस्थाओं में कथक सिखाया जाता है। इन सबके बीच अहम यह है कि युवाओं में इस नृत्य के प्रति दिलचस्पी काफी कम है।
लखनऊ घराना
नवाब आसिफुद्दौला जब फैजाबाद से लखनऊ आए तो सभी वर्गों के लोगों को शहर के उत्थान के लिए आमंत्रित किया। इसमें कला के प्रेमी कथक के महान गुरु पंडित प्रकाश महाराज को भी बुलाया। वह लखनऊ आ गए और कथक को आगे बढ़ाया। उनके बाद उनके तीन बेटे दुर्गा प्रसाद, भ्ौरव प्रसाद और ठाकुर प्रसाद ने लखनऊ में कथक की प्रथा को आगे बढ़ाया इसे ही लखनऊ घराना कहा जाता है।
बदहाली के शिकार हैं कथक कलाकार
मैं पिछले 4० वर्षों से कथक से जुड़ा हूं। हमारा शास्त्रीय नृत्य जिस उंचाई पर पहुंचना चाहिए उस मुकाम तक नहीं पहुंचा है। हमारी सरकार इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती है। जहां एक तरफ शहर में आयोजित कार्यकम और महोत्सव में फिल्मी दुनिया से लोग बुलाए जाते हैं, उन्हें लाखों रुपये दिए जाते हैं। वहीं शास्त्रीय नृत्य के कलाकारों को हजारों रुपये भी मुश्किल से मिलतें हैं। इसे संस्कृति विभाग की अनदेखी कहें या आमजनों में कला के प्रेम की कमी। आज के दौर में कला को प्यार और स्नेह कम ही मिलता है। कथक के कलाकार अर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। कई लोगों ने अपना पेशा भी बदल दिया है।
– पंडित अर्जुन मिश्रा, संस्थापक, कथक अकादमी
मैंने कथक में ही अपना जीवन बिताने का फैसला किया है। मैं कथक में पीएचडी भी कर रहा हूं। देश-विदेश में कथक के जरिए भारतीय कला को सभी के दिलों में संजोकर रखा है। दुनिया में मुझे बहुत प्यार दिया है, मगर अपने शहर लखनऊ में कथक के चाहने वाले कम ही दिखते हैं।
– अनुज मिश्रा, अंतर्राष्ट्रीय कथक कृतक
मैंने अपने पिता की विरासत को अपना बना लिया है। मैं बनारस घराने से जुड़ी हुई हूं। मैंने नृत्य में परास्नातक की शिक्षा ली है। मैंने अपने पिता से लगभग 1० साल कथक की शिक्षा ली है। मुझे बहुत खुशी है कि मैं कथक को जीवित रखने में अपनी सहभागिता दे पा रही हूं।
– कांतिका मिश्रा, कथक नृत्यका
मैंने छह वर्षों तक अर्जुन मिश्रा के निर्देशन में कथक सीखा है। लखनऊ महोत्सव हो या ताज महोत्सव, हर जगह मैंने कथक के कार्यक्रम किए हैं। मुझे खुशी है कि मैं भारतीय नृत्य को आगे बढ़ाने में अपने गुरु का साथ दे रही हूं। मुझे फL हैं कि मैं लखनऊ घराने में हूं।
– नेहा सिंह, अंतर्राष्ट्रीय कथक कृतक
विदेशी कलाकारों में है ललक
मैं यूएसए से आई हूं। मैं कथक की दिवानी हूं। मैं कई वर्षों से भारत के अलावा कई देशों में कथक के कार्य्रकम प्रस्तुत दे चुकी हूं। मेरे देश में कई लोग कथक सीख रहे हैं।
– नतालिया हिल्डरन, यूएसए
मैं कथक के लिए कुछ भी कर सकती हूं। मैं स्विटजरलैंड की रहने वाली हूं। मैंने भारत में कई कार्यक्रम किए हैं। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चंडीगढ़, हैदराबाद आदि शहरों में भी कथक की प्रस्तुति दी है। मुझे यहां काफी प्यार मिला है।
-फैनी मार्ख्ो, यूरोप
मैं बचपन से ही कथक सीख रही हूं। मेरे देश कनाडा में इस नृत्य के काफी चाहने वाले हैं। कनाडा में भी कथक इंस्टीटñूट हैं। यहां सैकड़ों लोग कथक सीखते हैं। मैं देश-विदेश में कई कार्यक्रम पेश कर चुकी हूं।
– सुदेशना मॉली, कनाडा