एंटीबायोटिक्स का अंधाधुध इस्तेमाल आने वाले दिनों में एड्स से भी ज्यादा घातक हो सकता है। डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी की है कि अगर इसी तरह एंटीबॉयोटिक्स का उपयोग किया जाता रहा तो भारत समेत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में वर्ष 2०5० तक एक करोड़ से ज्यादा लोगोें की मौत इसके दुष्प्रभाव से हो सकती है। एचआईवी संक्रमण होने पर शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है, जबकि एंटीबॉयोटिक के अंधाधुंध इस्तेमाल से उनके खिलाफ माइक्रोबियल पैदा हो रहा है जो कि दवाओं के असर को खत्म कर रहा है।
बैक्टीरिया ड्रग रजिस्टेंस हो रहे हैं –
भारत में जिस तरह से एंटीबॉयोटिक दवाएं गलत ढंग से ली जा रही हैं, उससे बैक्टीरिया ड्रग रजिस्टेंस हो रहे हैं, यानी वह दवाओं के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर ले रहे हैं। कुछ सालों तक यही हालात रहे तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब बैक्टीरिया पर एंटीबॉयोटिक दवाएं पूरी तरह से बेअसर हो जाएंगी और तब रोगी के लिए हालात एचआईवी जैसे हो जाएंगे। डब्लूएचओ की इस गाइडलाईन को राजधानी के डॉक्टर भी मान रहे हैं। पल्मोनरी मेडिसिन के डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि लगभग यही हाल टीबी के एमडीआर मरीजों के साथ भी होता है। जिन्हें एंटीबॉयोटिक लेते लेते दवाएं बेअसर होने लगती हैं।
पूरा कोर्स किये बिना ही दवा बंद कर दी जाती है –
आम तौर से बैक्टीरिया से होने वाली तमाम बीमारियों के उपचार में एंटीबॉयोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है, लेकिन डॉक्टर की फीस बचाने के चक्कर में आदमी कोई भी बीमारी होने पर मेडिकल स्टोर से एंटीबॉयोटिक दवाएं खरीद कर खा लेता है। लेकिन इस चक्कर में अक्सर ये दवाएं या तो ओवर डोज हो जाती हैं, या फिर कम मात्रा में ली जाती हैं, जिससे रोगी को बड़ी मात्रा में इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। जब बीमारी की गम्भीरता के मुकाबले कम पावर की दवाएं ली जाती हैं। या बीमारी ठीक हो जाने पर पूरा कोर्स किये बिना ही दवा बंद कर दी जाती है, तो बैक्टीरिया के कमजोर पड़ जाने के कारण बीमारी तो ठीक हो जाती है, लेकिन बैक्टीरिया पूरी तरह से समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि वे धीरे-धीरे उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं।
यही कारण है कि 2० साल पहले जो एंटीबॉयोटिक दवाएं फोर्थ जनरेशन के तौर पर प्रयोग में लाई जाती थीं, अब सामान्य बीमारियों में फस्र्ट जनरेशन मानकर दी जाने लगी हैं। इसके दुष्परिणाम स्वरूप मच्छर की दवाओं का असरहीन होना तथा टीबी जैसी बीमारी का खतरनाक रूप ले लेना हमारे सामने है। जब ये दवाएं अधिक पावर की ले जाती हैं, तो उनके तमाम तरह के साइड इफेक्ट पैदा हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप रोगी के शरीर में अन्य खतरनाक बीमारियां जन्म ले लेती हैं।
घातक हो सकता है बिना डॉक्टरी परामर्श के दवा लेना :
केजीएमयू के फार्मेकोलॉजी विभाग के प्रो. संजय खत्री ने बताया कि आमतौर से 7० प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं, जो दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से बीमार होते हैं। ऐसा सिर्फ एंटीबॉयोटिक दवाओं के कारण ही नहीं होता, बल्कि अन्य तमाम एलोपैथिक दवाओं के कारण भी यही होता है। इसके पीछे मुख्य वजह है लोगों के बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेकर खा लेने की प्रवृत्ति। देखने में आता है कि लोग बदनदर्द होने पर ब्रूफेन, सर्दी होने पर सीट्रिजिन, खांसी होने पर कोई भी कफ सीरप, नींद न आने पर एल्प्राजोल, पेट दर्द होने पर मेट्रोजिल आदि दवाएं ले लेते हैं। जबकि लोगों को पता ही नहीं होता है कि इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं। गलत ढंग से लिये जाने पर ये फायदा के स्थान पर नुकसान ज्यादा करती हैं।
अधिक एंटीबायोटिक बनाती है बैक्टीरिया को मजबूत
एचआईवी, एमडीआर (मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंस) टीबी और स्वाइन फ्लू जैसी तीन प्रमुख बीमारियां अधिक एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की बुरी आदत का उदाहरण मात्र हैं। दवाओं के प्रति लोगों की आदत जानने के लिए डब्लूएचओ ने सर्वेक्षण किया, जिसके परिणाम में सामने आया कि खांसी, जुखाम, बुखार या सिरदर्द में 78 फीसदी लोगों को किसी डॉक्टर की जरूरत महसूस नहीं होती। यह भी पता लगा कि एक परिवार में इस्तेमाल की गई दवा तीन सदस्यों द्बारा आजमाई जाती है। खास बात यह कि एक डोज के असर के बाद लोग दूसरे समय दवा न लेना अधिक बेहतर समझते हैं। 15० विभिन्न आयु वर्ग के लोग और इतने ही जनरल फिजीशियन को सर्वेक्षण में शामिल किया गया। इन दवाओं को लेकर डॉक्टरों की समझ भी कम है। 17 प्रतिशत डॉक्टर जुकाम में भी एंटीबायोटिक देते हैं, जबकि डब्लूएचओ जुकाम के लिए किसी भी तरह की एंटीबायोटिक का सुझाव नहीं देता। इन दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग शरीर में एएमआर (एंटी माइक्रोबायल रेजिस्टेंस) विकसित करता है।
हो सकता है किडनी फेल्योर
डॉक्टरों का कहना है कि ब्रूफेन शरीर में दर्द होने पर ली जाने वाली सबसे कॉमन दवा है। इसकी वजह से गैस्ट्राइटिस हो सकती है तथा किडनी तथा लिवर फेल्योर हो सकता है। इसी प्रकार मेट्रोजिल के लम्बे समय तक इस्तेमाल से कैंसर तथा पेरीफेरल न्यूरोपैथी (नसों की समस्या), एल्प्राजोल से शरीर खोखला, आत्म हत्या के विचार आना, निमुसलाइड से लिवर तथा किडनी फेल्योर होना, डिस्पि्रन से गैस्ट्राइटिस, किडनी फेल्योर, स्टेरायड से मांसपेशी और हड्डी की कमजोरी, संक्रमण की आशंका तथा सीट्रीजिन-एविल से निद्रा व सुस्ती के प्रभाव देखने को मिलते हैं।
क्या हैं आंकड़े –
- WHO के अनुसार दिल्ली में एनडीएमके वन (सुपरबग) संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
- अस्पताल में जन्म लेने वाले 67 प्रतिशत शिशु एस टाइफी के शिकार होते हैं, जिसकी एक वजह इन्हें बेवजह एम्पिसिलिन दवाओं का
दिया जाना है। - सेक्सुअल ट्रांसमिटेट डिसीज सेंटर (एसटीआई) पर काम करने वाले 45 प्रतिशत में ट्रेटासाइक्लिन, सिप्रोफोलॉक्सिन और पेन्सिलिन के प्रति एंटी बायोटिक रेजिस्टेंस देखी गई।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ओआई स्टेन और कोलोराइड का संक्रमण देखा गया।
क्या हैं एंटीबायोटिक के अन्य तथ्य –
- जन्म के पहले चार हफ्ते में ही दस लाख बच्चे हर साल मर जाते हैं।
- इसमें से 19,००० रक्त के सेपिस नामक संक्रमण के शिकार होते हैं।
- 30 प्रतिशत नवजात शिशुओं को यह संक्रमण मां को दी गई एंटीबायोटिक से मिलता है।