शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चे होते हैं कुपोषण के शिकार

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Photo Source: patrika.com

गरीेब और ग्रामीण अंचल के लोगों में अभी भी कुपोषण एक बड़ी समस्या है, जिसमें सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं। इसमें पांच वर्ष आयु तक के बच्चे सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। कुपोषण के प्रकार में से एक मिरेसमस कुपोषण सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इसमें बच्चे का मुंह बंदर की तरह लगने लगता है, पूरे शरीर से मांस गायब हो जाता है और केवल हड्डी ही हड्डी दिखाई देती है। इस तरह के बच्चे सही खुराक और इलाज न मिलने के कारण बेवक्त मर जाते हैं।

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जन्म के समय अगर बच्चे का वजन सामान्य भी है तो जरूरी नहीं है कि उसे कुपोषण नहीं होगा। जन्म के बाद से अगर बच्चे का खान-पान अच्छा नहीं है तो भी वह कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। कुपोषण का सबसे बड़ा कारण है गरीबी और जानकारी का आभाव। केजीएमयू के बालरोग विभाग के प्रो. एसएन सिंह ने बताया कि कुपोषण दो प्रकार का होता है क्वाश्क्योर और मिरासमियस। मिरासमियस में बच्चे के शरीर का पूरा मांस गल जाता है और केवल शरीर पर हड्डी दिखाई देती है। कभी कभी बच्चों का मुंह बंदर की तरह भी लगने लगता है।

सबसे ज्यादा घातक क्वाश्वकोर रोग होता है –

प्रो. सिह ने बताया कि कुपोषण की बीमारी से प्रदेश में सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती है। सबसे खतरनाक बात यह होती है कि कुपोषित बच्चों को संक्रमण भी बहुत जल्दी होता है। इसके अलावा हाइपोथर्मिया, हाइपोग्लाइसिमिया, डायरिया डिहाइड्रेशन और एनिमिया सबसे ज्यादा ऐसे ही बच्चों को होता है। उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा घातक क्वाश्वकोर रोग होता है। इसमें शरीर में सूजन आ जाती है, जिससे बच्चा अन्य बीमारियों की चपेट में बहुत जल्द ही आ जाता है। ऐसी हालत में यह बीमारी जटिल रूप ले लेती है, जिसकी वजह से पहले संबंधित बीमारी का इलाज किया जाता है और उसके बाद कुपोषण का इलाज किया जाता है जो कि अच्छे खान-पान से ठीक किया जा सकता है।

कैसे करें बचाव –

प्रो. एसएन सिंह ने बताया कि यदि गर्भावस्था में मां अपने खान-पान का ख्याल रखने और समय पर टीकाकरण कराए तो बच्चा भी स्वस्थ्य रहेगा। पैदा होने के बाद भी छ: माह तक स्तनपान और उसके बाद अर्द्ध ठोस आहार जैसे पकी हुई दाल, खिचड़ी, हरी सब्जी, दलिया और सब्जियों का पेस्ट बनाकर दिया जा सकता है। इसके अलावा टीकाकरण से बच्चे को अन्य बीमारियों और संक्रमण से बचाया जा सकता है।

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