हीमोफीलिया – राजधानी में केवल केजीएमयू और पीजीआई में इसका इलाज संभव है। अभी तक फैक्टर पीजीआई से मंगाई जाता है, लेकिन कुछ माह से केजीएमयू में भी फैक्टर मंगाए जा रहे हैं। समय रहते मरीजों को फैक्टर नहीं मिल पाता है तो निजी मेडिकल स्टोर से मंगाना पड़ता है। ऐसी हालत में गरीब मरीजों को इलाज में काफी दिक्कत होती है, क्योंकि फैक्टर काफी महंगा आता है।
हीमोफीलिया के मरीजों के लिए होने चाहिए मानसिक और पुनर्वास केन्द्र –
हीमोफिलिया का इलाज वृहद स्तर पर होना चाहिए, जिसमें मरीजों को इलाज के साथ साथ उनकी काउंसलिंग भी की जानी चाहिए। चूंकि यह बीमारी जीवन पर्यन्त चलती है, जिसकी वजह से कई बार मरीज मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में उनके लिए ज्यादा मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं और उन्हें सामान्य जीवन जीने में ज्यादा परेशानी होती है। इसलिए ऐसे मरीजों का पुर्नवास केन्द्र होने चाहिए, जहां उनकी समय-समय पर काउंसलिंग भी की जानी चाहिए।
विदेशों में हीमोफिलिक मरीजों के प्रति है ज्यादा जागरुकता –
विदेशों में हीमोफिलिक मरीजों के प्रति ज्यादा जागरुकता है। इसमें पैदा होने वाले बच्चे में हीमोफीलिया का पता चलता है तो उन्हें तुरन्त तीन दिन तक फैक्टर इंजेक्शन दिया जाता है। इसके बाद जब बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तब यह फैक्टर फिर से दिए जाते हैं। बाद में यह और कम कर दिए जाते हैं। शुरुआत में ही फैक्टर दे देने से इस बीमारी को बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। जिससे ऐसे मरीज लंबे समय तक सामान्य जीवन जी सकते हैं। हीमोफीलिया बीमारी के लिए जीन थ्ौरेपी तकनीक अभी ट्रॉयल स्टेज पर है। इस तकनीक में उस प्रभावित जीन को ठीक किया जाता है। अगर यह तकनीक सफल हो जाएगी तो हीमोफिलिया के मरीजों के लिए किसी बड़े वरदान से कम साबित नहीं होगी।
फैक्टर देने के मानक –
- फैक्टर अगर एक प्रतिशत से कम हो तो इसे सिवियर माना जाता है।
- फैक्टर एक से ऊपर हो तो इसे मॉड्रेट कहते हैं।
- फैक्टर अगर एक से पांच के बीच में होतो ऐसे मरीज सामान्य की श्रेणी में आते हैं।