लखनऊ। प्राणि उद्यान में स्थित सारस प्रेक्षागृह में गौरैया दिवस मनाया गया। कुछ वर्षों पहले तक हमारे घर-घर में, गॉंवों तथा छतों में बड़ी संख्या में गौरैया दिखायी देती थी। सुबह से ही चिड़ियों का चहकना शुरू हो जाता था परन्तु विगत कुछ वर्शों में गौरैया की संख्या में काफी कमी आई है। इसका मुख्य कारण शहरीकरण लाइफ, कल्चर तथा लोगो की जीवनषैली में बदलाव है। जहॉं पहले घरों में रौशनदान, अटारी, टीन की छतें आदि बनाई जाती थी जिनमंें गौरैया अपना घोसला बनाती थी, परन्तु जीवनषैली में बदलाव के कारण यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है तथा षहरों के बाहर खुले स्थल, बाग-बगीचों का कम होना एवं बढ़ती आबादी, षहरीकरण तथा वाहन प्रदूशण के कारण गौरैया की संख्या में कमी होती जा रही है।
इस अवसर पर वन्य जीव प्रेमियों ने गौरैया के महत्व के पर्यावरणीय महत्व को बताते हुए अवगत कराया कि सन 1950 के दशक में चीन में बहुत बड़ी तादात में फसलों को गौरैया से बचाने के लिए बहुत बड़ी संख्या में गौरैया को मारा गया था, जिसके दुष्परिणाम आगामी वर्षों में देखे गये। इसी क्रम में अमिता कनौजिया, प्रोफेसर लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने गौरैया के बारे में बड़ी विस्तार से लोगों को जानकारी दी गयी तथा उनके संरक्षण के लिए किये जाने वाले प्रयासों के लिए विस्तार से बताया गया।