लखनऊ । सेनेटरी नैपकिन पैड मनोरंजन वास्तु नहीं है बल्कि जरूरतमंद किशोरियों और महिलाओं के लिए आवश्यक वस्तु है। सरकार से अपील है कि इस पर शून्य जीएसटी (सामान्य वस्तु एवं सेवा कर) लगाये, जिस पर सरकार ने 12 प्रतिशत जीएसटी लगा रही है जिसके कारण सेनेटरी नैपकिन पैड जरूरतमंद महिलाओं और किशोरियों की पहुँच से बाहर हो सकते हैं। यह बात आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान के निदेशक राहुल द्विवेदी ने अलीगंज स्थित प्रधानमंत्री कौशल विकास केन्द्र में फॅमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोसाइटी फॉर सोशल रिजेनरेटिव एंड इक्विटी, स्वास्थ्य को वोट अभियान के तहत आयोजित कार्यशाला में कही।
उन्होंने कहा कि सेनेटरी नैपकिन पैड को आराम की वास्तु की तरह नहीं देखना चाहिए बल्कि एक आवश्यकता की तरह मानना चाहिए क्योंकि वो किशोरियों और महिलाओं को स्वास्थ्य और आत्म-सम्मान दे सकता है। हर किशोरी और महिला जिसे सेनेटरी नैपकिन की आवश्यकता है उसे पर्याप्त मात्रा में नियमित रूप से नैपकिन पैड प्राप्त हो पायेगा। फॅमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की प्रमुख समन्यवक मिताश्री घोस जी ने बताया कि यूपी स्वास्थ्य विभाग के पूर्व आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 28 लाख किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाने में नागा करती हैं।
- मासिक धर्म सम्बन्धी अस्वच्छता से अनेक संक्रमण, सूजन, मासिक धर्म सम्बन्धी ऐठन, और योनिक रिसाव आदि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी आती हैं।
- मासिक धर्म एक किशोरी या महिला के लिए प्राकृतिक स्वस्थ होने का संकेत है, न कि शर्मसार या डरने या घबड़ाने वाली कोई घटना है।
- मासिक धर्म सम्बन्धी सामाजिक बाधाएं भी हैं जैसे कि लगभग 50 प्रतिशत किशोरियों या महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रसोई में जाने की मनाही होती है।
- धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने पर भी रोक होती है।
- आवश्यक है कि हम मासिक धर्म सम्बन्धी विषयों पर चुप्पी तोड़ें और विश्वसनीय लोगों से इस पर खुल के बात हो जिससे कि किशोरियां और महिलाएं, मासिक धर्म जो एक प्राकृतिक स्वस्थ संकेत है।