ट्रामा सेंटर में संक्रमण का खतरा

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लखनऊ। केजीएमयू के ट्रामा सेंंटर में आईसीयू से लेकर ओटी तथा वार्ड में संक्रमण का खतरा बना हुआ है। हालात यह है कि ट्रामा सेंटर के वार्डो में फैली दुर्गंध मरीजों के लिए आफत बनी हुयी है। अस्पताल संक्रमण कंट्रोल कमेटी की सुस्ती के चलते आने वाले समय में मरीजों की जान खतरे में पड़ सकती है। आईसीयू से लेकर ओटी एवं वार्ड तक कहीं भी मानकनुसार संक्रमण की जांच नहीं हो रही। वहीं ट्रामा प्रशासन का हाल और भी खराब है।

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केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर, बाल रोग विभाग, गांधी वार्ड, आर्थोपैडिक विभाग, के आईसीयू व ओटी में हर तीन माह संक्रमण की जांच कर उचित कार्रवाई का नियम है। यह जिम्मेदारी संबंधित विभागाध्यक्ष एवं ओटी प्रभारी की होती है। संक्रमण की आशंका होने पर वहां कल्चर टेस्ट कर बैक्टीरिया आदि का पता लगाया जाता है। नमूना माइक्रोबायोलॉजी लैब भेजकर जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाती है। अधिकारियों की सुस्ती के चलते लम्बे समय से न तो सैम्पल लिए गए और न ही कल्चर टेस्ट ही हुआ। ऐसे में मरीज-तीमारदारों में संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि यदि ओटी में कोई खतरनाक बैक्टीरिया फैल जाए तो गंभीर रोगियों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। उधर अस्पताल संक्रमण कंट्रोल कमेटी की माने तो समय-समय पर सैंपल जांच के लिए आते हैं। उनका कहना है कि यह जिम्मेदारी नर्स, ओटी, आईसीयू प्रभारी की होती है। वह संक्रमण की आशंका होने पर कमेटी का सूचित करे तथा सैंपल जांच के लिए भेजे।

ट्रॉमा सेंटर में मरीज-तीमारदारों का आवागमन अधिक होने के चलते वहां पर संक्रमण फैलने की संभावना हर समय बनी रहती है। जो मरीजों के लिए बेहद खतरनाक मानी जाती है। हालात यह हैं कि सभी आईसीयू तक में तीमारदारों के प्रवेश को नहीं रोका जा पाता जिससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। इसे रोकने के लिए ओटी एवं वार्ड आदि में समय-समय पर कल्चर टेस्ट कर बैक्टीरिया आदि की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। लेकिन ट्रामा समेम कई विभागों में सैंपल तक नहीं लिए गए जिससे संक्रमण का पता चल पाता। इस सम्बंध में जब ट्रामा प्रभारी डा.हैदर अब्बास से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि यह हमारा काम नहीं हैं,सैम्पल लेना माइक्रोबायोलॉजी का काम है। वो अपना सैंपल ले जाते हैं और जांच करते हैं।

पहले हर हप्ते होती थी जांच

हास्पिटल में संक्रमण को रोकने के लिए पहले हर हप्ते सैंपल मंगवाकर जांच कराई जाती थी। अप्रैल माह बाद से विभाग में सैंपल आने कम हुए हैं। इतना ही नहीं विभागाध्यक्ष समेत प्रभारियों को आखिरी बार सैंपल भेजे जाने तक की जानकारी नहीं हैें।

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