लखनऊ। यदि किसी बच्चे को बार-बार संक्रमण हो रहा है या फिर संक्रमण हो जाने के बाद एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हो रहा है। तो तत्काल बच्चे को विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए। नहीं तो बच्चे की जान को भी खतरा हो सकता है। यह कहना है कैलिफोर्निया से आये प्रो.सुधीर गुप्ता का। वह केजीएमयू में बुधवार को गठिया रोग विभाग के स्थापना दिवस के अवसर पर प्राइमरी इम्यूनो डिफिसिएनसी विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने बताया संक्रमण फेफड़े से लेकर जोड़ों तक में हो सकता है। इस तरह की समस्या होने पर दवा का भी असर नहीं होता है। साथ ही कई प्रकार के संक्रमण से ग्रसित हो जाते हैं। बहुत से मामलों में संक्रमण अधिक बढ़ जाने पर बच्चे की मौत हो सकती है। इस रोग में बच्चे अर्थराइटिस से भी पीड़ित हो सकते हैं। यह बीमारी हिमोफिलिया की बीमारी से चार गुना ज्यादा कॉमन हैं। कुछ मामलों में यह बीमारी व्यस्क हो जाने के बाद पता चलती है।
उन्होंने बताया कि इस बीमारी के प्रति लोगों के साथ ही चिकित्सकों को भी जागरुक होने की जारूरत है। जिससे मरीज को सही उपचार मिल सके । उन्होंने बताया कि इस बीमारी से 1200 में से एक बच्चा ग्रसित होता है। इस बीमारी से ग्रसित ज्यादातर बच्चों की मृत्यु जन्म के एक वर्ष के भीतर हो जाती है। इसका मुख्य कारण एक यह भी है कि इस बीमारी की पहचान समय रहते नहीं हो पाती है।
इस अवसर पर गठिया रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.सिद्धार्थ कुमार दास ने बताया कि विभाग की स्थापना वर्ष 2006 में हुयी थी । वहीं भवन वर्ष 2008 में मिला । इस वर्ष 10 हजार मरीजों को विभाग में इलाज मिला। बीते साल मरीजों की संख्या बढ़कर 60 हजार हो गयी। जल्द ही विभाग में एमआरआई की सुविधा मरीजों की दी जायेगी। इस अवसर पर द फाउंडेशन ऑफ प्राइमरी इम्युनो डिफेंसिएनसी डिजीज तथा केजीएमयू के बीच एक समझौता हुआ है। जिसके तहत प्राइमरी इम्युनो डिफेंसिएनसी से ग्रसित बच्चों के उपचार के लिए इम्यूनोग्लोबिन एवं रोग की पहचान व इलाज नि:शुल्क प्रदान किया जायेगा।
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