नया एक्ट मध्यम मरीजों के हित में नहीं

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लखनऊ। नेशनल मेडिकल कमीशन बिल आने से इसका कमियों का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ेगा। इसके आने से चिकित्सा क्षेत्र में विशेषज्ञों की बजाय एक गलत सिस्टम को बढ़ावा मिलेगा। यह बात इंडियन मेडिकल काउंसिल (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.रवि वानखेडकर ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित कलाम सेंटर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए दी। उन्होंने कलाम सेंटर में मेडिकोज को सम्बोधित किया।

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उन्होंने बताया कि इस बिल के पास हो जाने से सरकार का निजी मेडिकल कालेजों की 40 प्रतिशत सीटों पर नियंत्रण रह जायेगा, जो कि मौजूदा समय में 85 प्रतिशत है, इससे निजी मेडिकल कालेज की फीस पर नियंत्रण नहीं रहेगा। इससे मध्यम वर्गीय मरीज का इलाज सीधे तौर पर प्रभावित होगा।

उन्होंने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में विदेश से एमबीबीएस करने वालों को भारत में प्रैक्टिस करने के लिए एमसीआई स्क्रीनिंग टेस्ट देना होता है। जिससे यह जानकारी मिलती है कि बाहर से डिग्री लेने वालों को भारतीय चिकित्सा व्यवस्था का ज्ञान है या नहीं। एनएमसी बिल आ जाने के बाद यह व्यवस्था समाप्त हो जायेगी। इसके अलावा गैर चिकित्सा क्षेत्र के सदस्यों को मेडिकल गर्वनेंस की सबसे प्रमुखतम संस्थाओं के उच्चतम स्थानों पर इस बिल के लागू होने के बाद बैठा दिया जायेगा। उन्होंने बताया कि मौजूदा इंडियन मेडिकल कौंसिल एक्ट 1956 के अनुसार एलोपैथिक मेडिसिन के चिकित्सक होने के लिए न्यूनतम योग्यता एमबीबीएस होनी चाहिए।

एनएमसी बिल लागू होने के बाद मौजूदा कानून समाप्त माना जायेगा। जिससे एलोपैथिक मेडिसिन के चिकित्सक होने के लिए न्यूनतम योग्यता एमबीबीएस नहीं रह जायेगी। आयुर्वेदिक योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा,यूनानी शिक्षा एवं होम्योपैथी की योग्यता रखने वाले चिकित्सक भी ब्रिाज कोर्स करने के बाद एलोपैथिक मेडिसिन में अपना पंजीकरण करा सकेंगे, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ पर पड़ेगा। डा.रवि के मुताबिक आईएमए इस बिल का विरोध कर रहा है। इसी के तहत 25 मार्च को दिल्ली में डाक्टरों की महापंचायत होगी। सरकार यदि इस बिल पर रोक नहीं लगाती है तो हमें मजबूरन आन्दोलन करना पड़ेगा। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश आईएमए के अध्यक्ष डा.सुधीर,डा.पीके.गुप्ता,डा.जेडी रावत,डा. एससी श्रीवास्तव, डा. राकेश, डा. विनोद जैन, डा, जीपी सिंह समेत कई डाक्टर मौजूद थे।

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