लखनऊ। अब नियमानुसार मरीज को कभी होल ब्लड नहीं चढ़ाना चाहिए। इससे मरीज को साइड इफेक्ट होने की आशंका होती हैं। सीवियर एनिमिया के अलावा अन्य कुछ मामलों में कार्डियक पर भी असर हो सकता है। यह जानकारी डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रमुख डॉ.प्रीति एलिहेंज ने दी। गोमती नगर के लोहिया अस्पताल में आयोजित गोष्ठी में दी।
डॉ.प्रीति ने बताया कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन को लेकर गाइडलाइन के अनुसार अब किसी भी अस्पताल में होल ब्लड के इस्तेमाल पर रोक लग चुकी है। उन्होंने बताया कि एक होल ब्लड से चार कंपोनेंट्स आरबीसी, फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा और पेक्ड रेड ब्लड सेल और रेनडम डोनर से क्रायो प्रेसीपीटेट बनते हैं। मरीज की जरूरत के अनुसार ही ब्लड कंपोनेंट्स क्रॉस मैच करके मरीज को चढ़ाए जाने चाहिए।
डॉ.प्रीति ने बताया कि एफेरोसिस सेपरेटर से सिंगल डोनर का होल ब्लड न लेकर सीधे ही प्लाज्मा और प्लेटलेट डोनेट की जाती है। इससे मरीज को होल ब्लड नहीं देना पड़ता है। आमतौर पर ब्लड डोनेट करने पर दूसरे डोनेशन में तीन माह का समय लगता है, जबकि इसमें मरीज दूसरे सप्ताह फिर से डोनेशन कर सकता है। कार्यक्रम का उद्घाटन लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ.एके त्रिपाठी ने किया। गोष्ठी में लोहिया अस्पताल के निदेशक डॉ.डीएस नेगी, ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ.वीके शर्मा मौजूद रहे।
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