अपार धन-दौलत दिलाएगी अपरा एकादशी व्रत

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अपरा या अचला एकादशी व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल 30 मई 2019 के दिन अपरा एकादशी मनाई जाएगी। इस व्रत पुण्यदायी होने के साथ ही सभी पापों को नष्ट करने वाला होता है।

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साल में होती हैं 24 एकादशी

एक हिंदू वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं। मलमास या अधिकमास की दो एकादशियों सहित इनकी संख्या 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी का खास महत्व होता है। वैसे समस्त एकादशियों में ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है, सर्वोत्तम मानी जाती है। वहीं ज्येष्ठ मास की कृष्ण एकादशी जिसे अपरा या अचला एकादशी कहा जाता है, का भी कम महत्व नहीं है।

अपरा एकादशी व्रत का महत्व

शास्त्रों के मुताबिक इस व्रत के करने से कार्तिक मास में स्नान या गंगाजी के तट पर पितरों को पिंड दान करने के बराबर का फल मिलता है। इसके साथ ही गोमती में स्नान, कुम्भ में केदारनाथ के दर्शन तथा बद्रिकाश्रम में रहने के अलावा सूर्य-चन्द्र ग्रहण के दौरान कुरुक्षेत्र में स्नान करने का जो महत्व है, वही महत्व अपरा एकादशी व्रत का होता है। इतना ही नहीं इस व्रत का फल हाथी-घोड़े और स्वर्ण दान के साथ ही यज्ञ करने तथा गौ और भूमि दान के फल के बराबर होता है।

अपरा एकादशी व्रत पूजन विधि

  • अपरा एकादशी व्रत में साफ सफाई एवं मन की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है।
  • व्रत का प्रारंभ दशमी तिथि को हो जाता है। ऐसे में व्रती को दशमी तिथि से ही भोजन और आचार-विचार में संयम रखना चाहिए।
  • एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्द उठ कर स्नानादि कर व्रत का संकल्प और भगवान विण्णु की पूजा करनी चाहिए।
  • पूजन में तुलसी, चंदन, गंगाजल और फल का प्रसाद अर्पित करना चाहिए।
  • इस दिन व्रती को छल-कपट, बुराई और झूठ से परहेज करना चाहिए।
  • इस दिन चावल भी नहीं खाना चाहिए।
  • एकादशी के दिन जो व्यक्ति विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।

अपरा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक प्राचीन काल में महिध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज अधर्मी और अन्यायी होने के साथ ही अपने बडे भाई के प्रति द्वेष रखता था। एक दिन मौका पाकर उसने अपने बडे भाई राजा महिध्वज की हत्या कर दी और मृत शरीर को जंगल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे जमीन में गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की अात्मा प्रेत रूप में पीपल के पेड़ पर रहने लगी और रास्ते से गुजरने वाले लोगों को परेशान करने लगी। एक दिन धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजर रहे थे, तो उन्हें इस बात की जानकारी मिली।

अपने तपोबल से उन्होंने उसके प्रेत बनने का कारण जाना और पीपल पेड़ से उतार कर परलोक विद्या का उपदेश दिया। प्रेतात्मा को मुक्ति के लिये अपरा एकादशी व्रत करने का मार्ग दिखाते हैं और उसकी मुक्ति के लिए खुद ही अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर उन्होंने इसका पुण्य प्रेत को दे दिया। व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल गई और वह बैकुंठधाम को चला गया।

अपरा एकादशी से जुड़ी अन्य कथा

एक अन्य कथा के मुताबिक एक बार एक राजा ने अपने राज्य में काफी मनमोहक उद्यान बनवाया। इसमें लगने वाले मनोहर पुष्पों से देवता भी आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके और वे उद्यान से पुष्प चुराकर ले जाने लगे। चोरी और उद्यान की खूबसूरती के नष्ट होने से परेशान राजा ने कई प्रयास किए लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुअा। राजपुरोहितों से मदद मांगी गई, तो सभी ने इसमें दैवीय शक्ति का हाथ होने का अंदेशा लगाया। इसके बाद उन्होंने भगवान श्री हरि के चरणों में अर्पित होने वाले पुष्प को उद्यान के चारों और डालने का सुझाव दिया। रोज की तरह देवता और अप्सराएं उद्यान में पहुंची, लेकिन दुर्भाग्य से एक अप्सरा का पैर भगवान विष्णु को अर्पित किए पुष्प पर पड़ गया, जिससे उसके सभी पुण्य नष्ट हो गये और वह अपने साथियों के साथ उड़ कर न जा सकी।

सुबह में एक अप्सरा को देखकर सभी हैरान हो गए। राजा को खबर की गई। अप्सरा ने अपना अपराध कुबूल करते हुए सारी बातें बता दी और अपने किये पर पश्चाताप किया। तब राजा उससे पूछा कि अब वे उसकी कैसे मदद कर सकते हैं। इस पर अप्सरा ने कहा कि यदि उनके राज्य की प्रजा में से कोई भी ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का उपवास रखकर उसका पुण्य उसे दान कर दे तो वह वापस लौटने में समर्थ हो सकेगी। राजा ने प्रजा में घोषणा करवा दी और ईनाम के रूप में आधा राज्य देने का ऐलान किया, लेकिन इस व्रत की जानकारी न होने के कारण कोई सामने नहीं आया। परेशान अप्सरा ने चित्रगुप्त को याद किया, तब उन्होंने जानकारी दी कि इस नगर में एक सेठानी से अनजाने में एकादशी का व्रत हुआ है, यदि वह संकल्प लेकर व्रत का पुण्य तुम्हें दान कर

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