लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के यूरोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ डाक्टरों ने किशोरी की सर्जरी से निजी अंग का निर्माण करके नयी जिंदगी दे दी है। वह शिशु को जन्म तो नहीं दे सकेगी, लेकिन वैवाहिक जिंदगी व्यतीत कर सकेगी। इस सर्जरी में सिग्मॉयड वेजाइनलोप्लाटी का प्रयोग किया गया। विशेषज्ञों का दावा है कि किशोरी जन्मजात बीमारी एमआरकेएच सिंड्रोम के टाइप टू से पीड़ित थी, टाइप टू कैटेगरी में दुनियाभर अभी तक सिर्फ दो केस पंजीकृत पाए गए हैं।
विशेषज्ञों का दावा है कि एमआरकेएच सिंड्रोम टाइप वन की कई सर्जरी की जा चुकी है, लेकिन टाइप टू कैटेगरी में दुनियाभर अभी तक सिर्फ दो केस पंजीकृत पाए गए हैं। यह तीसरा केस है। यह युवती दिल, गुर्दा, गला और रीढ़ की हड्डी समेत कई जटिल बीमारियों से पीड़ित थी। आयुष्मान योजना का लाभार्थी होने की वजह से यह सर्जरी निशुल्क हुई है।
रायबरेली निवासी किशोरी (18) को पीरियड नहीं आने मां ने आसपास के अस्पतालों में स्त्री रोग डाक्टरों से इलाज कराया। कई डाक्टरों से इलाज कराने के बाद डाक्टरों ने केजीएमयू जाकर इलाज कराने का परामर्श दिया। परिजन यूरोलॉजी विभाग के प्रो. विश्वजीत सिंह ने ओपीडी में पहुंचे। उन्होंने कि शोरी मरीज को देखा और जांच करायी तो आश्चर्य चकित रह गये। किशोरी जांच में एमआरकेएच सिंड्रोम (टाइप टू) से पीड़ित थी।
रिपोर्ट के आधार पर दोबारा जांच की गयी, तो किशोरी के निजी अंग बाहर से दिख रहे थे, परन्तु जांच में उसके आंतरिक स्तर अंग यूट्रस, ओवरी, यूटेरिन ट्यूब आदि नहीं दिखे। परिजनों को विस्तारपूर्वक जानकारी देकर सर्जरी करने का निर्णय लिया गया। डा. विश्वजीत सिंह ने बताया कि परिजनों को यह स्पष्ट कर दिया गया कि युवती वैवाहिक जिंदगी बिता सकती है, लेकिन गर्भ धारण नही कर सकेगी। इसके बाद भी परिजन सर्जरी कराने के लिए अनुमति दे दी। उन्होंने बताया कि सर्जरी से पहले प्री- एनस्थीसिया जंाच में किशोरी के हार्ट के वॉल्व में खराबी मिल गयी। अल्ट्रासाउंड कराया तो उसके एक ही गुर्दा मिला। यही गर्दन छोटी होने के साथ ही स्पाइन में भी दिक्कत थी। इस तरह लक्षण एमआरकेएस टाइप टू के मरीज में पाए जाते हैं।
विशेष तकनीक से की गयी सर्जरी में दो मीटर की आंत से दस सेंटीमीटर का टुकड़ा निकाला गया। फिर आंत को आपस में विशेष प्रकार से जोड़ कर दस सेंटीमीटर के टुकड़े से वेजाइना ( निजी अंग) को बना दिया गया। इस प्रक्रिया में करीब डेढ़ घंटे का समय लग गया। इसके बाद उसके आंतरिक अंगों को सेट किया गया। लगभग दो घंटे तक सर्जरी चली। हफ्ते के बाद नवनिर्मित निजी अंग पूरी तरह से सेट होकर तैयार हो गये। अब उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है। सर्जरी के तीन महीने बाद वह शारारिक सम्बंध बना सकती है। उसका यूट्रस अविकसित है, इसलिए गर्भधारण नहीं कर सकती है। सर्जरी टीम में विशेषज्ञ डा. विश्वजीत सिंह के नेतृत्व में डा. राहुल जनक सिन्हा, रेजीडेंट डॉ ज्ञानेंद्र, डॉ मुकेश, डा. कौशल, डा. विश्वानु, एनस्थीसिया विभाग के डॉ जिया सहितक पैरामेडिकल एवं नसिंग स्टाफ मौजूद थे।
यह है एमआरकेएच
सर्जरी टीम में शामिल डा. राहुल जनक ने बताया कि एमआरकेएच सिंड्रोम का नाम पूरा नाम मेयर, टॉकीटेन्सकी, कुस्टर, हाउसर सिंड्रोम है। इन चारों वैज्ञानिक डाक्टरों ने मिलकर इसकी खोज की थी। यह एक आंनुवशिंक बीमारी है, जिसमें निजी अंग छोटे, अविकसित होते हैं। टाइप वन में शरीर का कोई एक हिस्सा प्रभावित होता है, जबकि टाइप टू में गर्दन छोटी , सिर छोटा होना, अंगुलियां, छह या सात होना, किडनी, हार्ट, लिवर, पैक्रियाज आदि की भी समस्या होती है।
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