इस योग को करने के लिए पीठ के बल लेटकर घुटनों को मौड़िए। इस दौरान एड़िया नितंबों के समीप लगी होनी चाहिए। इसके बाद दोनों हाथों को उल्टा करके कंधे के पीछे थोड़े अंतर पर रखिए, इससे संतुलन बना रहेगा। इस प्रक्रिया के बाद श्वास अंदर भर कर कटि प्रदेश और छाती को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं इसके साथ ही धीरे-धीरे हाथ और पैरों को समीप लाने का प्रयास कीजिए। इस काम में जल्दबाजी बिल्कुल नहीं करनी है इस प्रक्रिया में शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाती है। धीरे-धीरे अभ्यास करते रहना चाहिए, आसन से वापस आते समय शरीर को ढीला रखिए कमर भूमि पर टिका दीजिए। यह प्रक्रिया तीन से चार बार कीजिए।
कहीं कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए अगर कोई दिक्कत आ रही हो तो अपने योग विशेषज्ञ से परामर्श ले सकते हैं। इस आसन करने से रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाया जा सकता है जो कि बुढ़ापा जल्दी नहीं आने देता है। इसके साथ ही जठराग्नि बातों को सक्रिय करता है। शरीर में स्फूर्ति और पीर की वृद्धि करता है यही नहीं श्वास रोग, सिरदर्द, सर्वाइकल और स्पॉन्डिलाइटिस के लिए यह आसन बहुत लाभदायक है। देखा गया है कि यह महिलाओं के गर्भाशय के विकारों को भी दूर करने में मददगार होता है।
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