लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की लॉरी कार्डियोलॉजी विभाग की इमरजेंसी बंद हुए एक सप्ताह होने जा रहा है। डाक्टरों ने सुरक्षित न होने से इमरजेंसी शुरु करने से मना कर दिया है। आज केजीएमयू प्रशासनिक अधिकारियों के पुलिस अधिकारियों ने लॉरी कार्डियोलॉजी की इमरजेंसी का निरीक्षण किया। सुरक्षा के लिए गार्ड की संख्या व पुलिस बल को गेट पर ही तैनात करने पर चर्चा हुई, लेकिन बात नहीं बन सकी। उधर ट्रॉमा सेंटर कैजुअल्टी में लारी की इमरजेंसी संचालन होने से कार्डियक मरीजों का इलाज होने में दिक्कत आ रही है। कार्डियक व कैजुअल्टी के मरीजों के बिस्तर साथ -साथ है। ऐसे में गंभीर मरीज आने पर उसे तत्काल भर्ती कर लिया जाता है। जब कार्डियक का मरीज आने पर डाक्टरों को जगह नहीं होने पर स्ट्रेचर पर ही इसीजी करने में दिक्कत होने लगती है।
लॉरी कार्डियोलॉजी विभाग की इमरजेंसी में मरीज की मौत पर तीमारदारों ने डाक्टरों की जमकर पीट दिया था। इसके बाद वहां पर इमरजेंसी का संचालन करने से मना कर दिया। इसके बाद लॉरी की इमरजेंसी को ट्रामा सेंटर में रेफर कर दिया गया। तब से लॉरी की इमरजेंसी बंद है। केजीएमयू के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. एस एन शंखवार व प्राक्टर डा. आरएएस कुशवाहा पुलिस अधिकारियों के साथ लॉरी कार्डियोलॉजी पहुंचे। यहां पर इमरजेंसी को शुरू कराने के लिए इमरजेंसी गेट पर ही पुलिस बल तैनात करने व गार्डो की संख्या को बढ़ाने पर चर्चा की गयी, लेकिन फाइनल किसी विकल्प पर निर्णय नहीं लिया जा सका।
उधर ट्रॉमा सेंटर की कैजुअल्टी में 24 घंटे में करीब तीन सौ के आस-पास मरीज आ जाते हैं। वहां पर 16 बिस्तर है। इसमें आधे बिस्तर पर लॉरी इमरजेंसी का संचालन करने का दावा कि या जा रहा है। हर एक घंटे पर कैजुअल्टी फुल हो जाती है। स्ट्रेचर तक अंदर जाने की जगह नहीं बचती। बृहस्पतिवार दोपहर बाद कैजुअल्टी बाहर स्ट्रेचर पर मरीज इलाज के इंतजार में पड़े रहे। उनका हाल लेने वाला कोई भी डॉक्टर नहीं था। मरीज घंटों तक इलाज के इंतजार में परेशान रहे। कैजुअल्टी खाली होने पर मरीजोंं को एक-एक करके अंदर बुलाया जाता है। तीमारदार सतीश का आरोप है कि दोपहर 12 बजे मरीज को लेकर कैजुअल्टी आए थे। जहां गार्डो ने अंदर जगह न होने से बाहर रोक दिया। डॉक्टर प्राथमिक उपचार तक जल्दी नहीं देते हैं। केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. संदीप तिवारी के मुताबिक, कैजुअल्टी में आने वाले हर मरीज को प्राथमिकता से उपचार दिया जाता है। जो मरीज गंभीर नहीं होते हैं उन्हें ही बाहर रोका गया होगा।
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