लखनऊ। क्रिटकल केयर यूनिट के विशेषज्ञों ने अनुभव किया है कि मरीज को अक्सर वेंटिलेटर पर शिफ्ट करने के बाद भी फेफड़े की गंभीर बीमारी से पीडि़त मरीज में कोई सुधार नहीं होता है। आंकड़ों के अनुसार क्रिटकल केयर यूनिट में भर्ती मरीजों में से दस प्रतिशत ईकमो (एक्स्ट्रा कारपोरियल मैम्ब्रोन ऑक्सीजिनेशन) से श्वसन प्रक्रिया पूरी करायी जाती है। इस विधि से लगभग तीस प्रतिशत मरीजों की जान बच सकती है। यह जानकारी एनस्थीसिया विभाग के प्रमुख व पूर्व निदेशक डॉ. दीपक मालवीय ने दी।
डा. मालवीय शुक्रवार को लोहिया संस्थान में आयोजित ईकमोकॉन – 2019 में संबोधित कर रहे थे। संस्थान के एकडमिक ब्लॉक प्रेक्षागृह में डॉ. दीपक मालवीय ने कहा कि अगर देखा जाए तो ईकमो (एक्स्ट्रा कारपोरियल मैम्ब्रोन ऑक्सीजिनेशन) डायलिसिस की तरह काम करती है। उन्होंने बताया कि इससे उनके यहां अब तक काफी मरीजों की जान बच चुकी है।
एनस्थीसिया विभाग के डॉ. पीके दास ने कहा कि ईकमो हार्ट व लंग की गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए बेहद कारगर है, परन्तु ईकमो (एक्स्ट्रा कारपोरियल मैम्ब्रोन ऑक्सीजिनेशन) के संचालन के लिए प्रशिक्षण व तकनीकी जानकारी आवश्यक है। उन्होंने बताया कि राजधानी के लगभग सौ व देश भर विभिन्न चिकित्सा संस्थानों से आये लगभग 124 डाक्टरों को ईकमो से इलाज की तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें यह विशेषकर बताया कि किन- किन परिस्थितियों में ईकमो से मरीज का इलाज करके जीवन दान दिया सकता है।
दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के डॉ. प्रनय ओझा ने कहा कि अभी तक सर्जरी में एनस्थीसिया विशेषज्ञों भी भूमिका सिर्फ मरीजों को बेहोशी करने की होती थी। नयी तकनीक के उपकरणों का प्रयोग व अपडेट होने पर उनकी जिम्मेदारी व कार्य का क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने बताया कि किसी भी उच्चस्तरीय हास्पिटल में आईसीयू, क्रिटिकल केयर यूनिट , पेन क्लीनिक समेत दूसरी विभागों में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। उन्होंने बताया कि क्रिटकल केयर के नये उपकरणों में ईकमो की लंग व हार्ट के गंभीर मरीजों को श्वसन प्रक्रिया को आसान बनाना हो गया है।
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