लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डाक्टरों ने प्लाज्मा थेरेपी देने में सफलता प्राप्त करने के साथ ही ग्लाइकोसर्ब यूनिवर्सल प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग किये जाने का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। गाइडलाइन के अनुसार तैयारी कर रहे केजीएमयू का ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग अब आईसीसीएमआर की हरी झंडी का इंतजार कर रहा है। यूनिवर्सल प्लाज्मा से कोरोना के गंभीर मरीज को प्लाज्मा चढ़ाने से पहले ब्लड ग्रुड की मैंिचंग नहीं करनी होगी। इस तकनीक का प्रयोग यूके व यूएसए देश में प्रयोग किया जा रहा है।
प्लाज्मा थेरेपी के तहत कोरोना से ठीक हो चुके मरीज का प्लाज्मा लेकर गंभीर कोरोना के मरीज को चढ़ाया जाता है। इस थेरेपी में प्लाज्मा से प्राप्त एंटी बाडी कोरोना के गंभीर मरीज को ठीक करने में मददगार साबित होती है। प्लाज्मा डोनेट कराने से पहले कोरोना से ठीक हो चुके मरीज के ब्लड की जांच में आईजीजी एंटीबाडी को देखी जाती है जो कि पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिये। गंभीर मरीज को पहले चरण में मात्र दो सौ एमएल प्लाज्मा ही चढ़ाया जाता है। अभी तक प्लाज्मा डोनेट कराने के लिए केजीएमयू का ब्लड ट्रासंफ्यूजन विभाग प्लाज्माफेरेसिस उपकरण के प्रयोग का कोई शुल्क नहीं ले रहा है।
प्लाज्मा थेरेपी की सफलता के बाद अब ग्लाइकोसर्ब यूनिवर्सल प्लाज्मा थेरेपी की तैयारी थोड़ा सा आसान हो जाता है। ब्लड विश्वस्तरीय मानक के अनुसार ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग इसकी अनुमति के लिए आईसीसीएमआर को प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग की प्रमुख डा. तूलिका चंद्रा ने बताया कि ग्लाइकोसर्ब यूनिवर्सल प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके मरीज का प्लाज्मा किसी गंभीर मरीज को चढ़ाने से पहले ब्लड मैचिंग कराने की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने बताया कि ग्लाइकोसर्ब तकनीक से कोरोना से ठीक हो चुके मरीज के प्लाज्मा में से एक विशेष प्रकार की एंटीबाडी हटा दी जाती है, उसके बाद यह प्लाज्मा किसी भी गंभीर कोरोना के मरीज को चढ़ाया जा सकता है। परन्तु प्लाज्माफेरेसिस तकनीक के साथ ग्लाइकोसर्ब किट लगभग कीमत 52 हजार आती है। इसलिए आईसीसीएमआर की हरी झंडी के बाद ग्लाइकोसर्ब किट की भी मांग की जाएगी। फिलहाल यह तकनीक एक बेहतर उच्चस्तरीय तकनीक है।
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