जीरो सर्विलांस: ठीक हो गए कोरोना संक्रमण से, पता नहीं चला

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लखनऊ। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय ने कोविड-19 जीरो सर्विलांस सर्वे खुद अपने स्तर पर करा कर शोध किया। यह सर्वे ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के ब्लड बैंक में ब्लड डोनेशन कर चुके मरीजों की ब्लड की जांच एक विशेष तकनीक से करके किया गया। सर्वे में परिणाम चौंकाने वाले थे, काफी संख्या में ऐसे लोग थे जो कोरोना संक्रमित होकर ठीक हो चुके थे और उनमें कोरोनावायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी बन चुकी थी। खास बात यह थी अनजाने में कोरोना से जंग जीत चुके यह लोग लेबर क्लास यानी कि मेहनतकश वर्ग के थे। बताते चलें इससे पहले दिल्ली और महाराष्ट्र में भी कोरोना महामारी के बीच में जीरो सर्विलांस सर्वे कराया गया, जिसमें काफी संख्या में लोग कोरोना संक्रमित होकर लोग ठीक हो चुके थे और उन्हें मालूम भी नहीं था कि वह संक्रमित हुए थे। इसका स्टडी कर रही ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग और ब्लड बैंक की प्रभारी डॉ तूलिका ने बताया यह काफी सूक्ष्म स्तर पर सर्वे था ,क्योंकि ब्लड बैंक में आने वाले डोनर का किया गया था ।
 

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डॉ. तूलिका चंद्रा ने कोरोना का संक्रमण बढ़ने के बाद कोविड-19 जीरो सर्विलांस स्मॉल स्टडी जून और जुलाई में रक्तदान करने वालों के ब्लड सैंपल का परीक्षण शुरू किया। एक महीने के अंतराल में 2,121 रक्तदाताओं के ब्लड में एमिनोग्लोबिन जी एंटीबॉडी का परीक्षण किया गया। जांच के लिए कैमेल्यूमिनिसेंस तकनीक का प्रयोग किया गया।
इस स्टडी का परीक्षण चौंकाने वाला था । 2,121 डोनर के ब्लड सैंपल में से 42 व्यक्तियों के ब्लड में कोरोना वायरस से लड़ने वाली प्रतिरोधक क्षमता यानी एंटीबॉडी मिली । इन 42 लोगों को कुछ समय पहले ही कोरोना का संक्रमण हुआ, लेकिन इनमें लक्षण नहीं दिखे । इस वजह से इलाज भी नहीं किया गया. फिर भी ये लोग कोरोना को हराकर ठीक हो गए। डॉ. चंद्रा कहती हैं कि हमने इन ब्लड डोनर्स को एसिंप्टोमेटिक ब्लड डोनर्स की श्रेणी में रखा है। एनालिसिस में यह भी खुलासा हुआ है कि प्रतिरोधक क्षमता पाए जाने वाले ब्लड डोनर्स में ज्यादातर पुरुष शामिल हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि अप्रैल और मई में ज्यादातर पुरुष वर्ग ही कतिपय कारणों से घर से बाहर निकले। वहीं महिलाएं अधिकतर घरों के अंदर ही थीं, जिसकी वजह से पुरुषों का एक्सपोजर हुआ और उनमें संक्रमण फैला ।
इनमें 18 से 29 वर्ष के लोग शामिल थे । जाहिर है, इस उम्र में स्वत: ही रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है । स्टडी में यह भी खुलासा हुआ है कि 50 वर्ष से अधिक के व्यक्तियों में जिन्होंने भी ब्लड डोनेट किया। उनमें से किसी में भी एंटीबॉडी नहीं पाई गई । लक्षण मिले और उन स्टडी में यह भी खुलासा हुआ है कि जिन लोगों में अधिक प्रतिरोधक क्षमता मिली है, वह हम मेहनतकश लोग थे। सिंप्टोमेटिक लोगों में लेबर क्लास होने का यह मतलब है कि उनके अंदर अन्य सभी लोगों की अपेक्षा प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। आवश्यकता है कि जो भी आपके घर में काम करने के लिए आ रहे हैं ।यदि वह स्वस्थ भी दिख रहे हैं ,तो भी उनसे सावधान रहते हुए ,उनसे दूरी बनाए रखें। हो सकता है कि वो संक्रमित हों,लेकिन उनमें लक्षण न दिख रहे हो।
उन्होंने बताया इम्यूनोग्लोबिन जी कोरोनावायरस से लड़ने की क्षमता वाली एंटीबॉडीज होती हैं । ये सिर्फ उन्हीं लोगों में बनती हैं जिनमें कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ हो। डॉ तूलिका का कहना है कि कैमेल्यूमिनिसेंस टेस्ट में
कोरोना वायरस से लड़ने वाली इम्यूनोग्लोबिन जी एंटीबॉडी को ब्लड डोनर में कैमेल्यूमिनिसेंट ऑटोमेटेड उपकरण की मदद से पता किया जाता है। इसमें कोविड एंटीजन कोटेड किट में ब्लड डाला जाता है, जिसमें शरीर में एंटीबॉडी की उपस्थिति पता चलती है. इसके साथ ही एंटीबॉडी की मात्रा भी इस उपकरण से पता लगाया जा सकता है।

डॉ. तूलिका चंद्रा का कहना है इस बात से बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता है कि जो एसिंप्टोमेटिक की श्रेणी में व्यक्ति रहे हैं या जिनमें एंटीबॉडी पाई गई है, उन्होंने संक्रमण नहीं फैलाया होगा। ब्लड डोनर को भी यह नहीं पता कि उसे कब संक्रमण हुआ और वह कब ठीक हो गया।

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