… तो जरूरी है oxygen label का ध्यान रखना

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लखनऊ। कोरोना महामारी में शरीर में आक्सीजन लेबल कं ट्रोल रखना संक्रमित मरीज के लिए चेलैज बनता जा रहा है। कोरोना पाजिटिव आने के बाद होम आइसोलेशन में मरीज हो या अस्पताल में भर्ती हो, डाक्टर मरीज का आक्सीजन लेबल सबसे पहले पता करता है। अब आक्सीजन लेबल जानने के लिए पल्स आक्सीमीटर की मांग भी बढ़ने लगी है। विशेषज्ञों का मानना है कि शरीर में आक्सीजन की कमी का सबसे जल्दी व बुरा असर इम्यूनिटी सिस्टम पर पड़ता है। शरीर में आक्सीजन की कमी हांेने पर थकावट लगना, सांस लेने में दिक्कत होने के अलावा ब्लड सर्कु लेशन स्लो हो जाता है। जिस कारण घबराहट होने लगती है,लेकिन आजकल कोरोना के मरीज में 15 प्रतिशत मरीज ऐसे है जिनमें गंभीर लक्षण दिखायी देते है। ऐसे में मरीज को आक्सीजन की आवश्यकता होती है आैर पांच प्रतिशत मरीज ऐसे होते है, जिनको वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है। यह स्थिति तब आैर जटिल हो जाती है, जब मरीज को पहले से फेंफड़े या अन्य गंभीर बीमारी हो। ऐसे में जरुरी होता है कि कोरोना संक्रमित मरीज की हालत में नजर रखा जाए , अन्य लक्षणों के साथ ही आक्सीजन लेबल भी पता करते रहना चाहिए। क्योंकि मरीज को अक्सर पता नहीं चलता है आैर उसका आक्सीजन लेबल गिरना शुरू हो जाता है। कोरोना के मरीजों का इलाज में जुटे विशेषज्ञों का मानना है कि बीमारी के शुरुआती दिनों में कम आक्सीजन का असर मरीज के श्वसन तंत्र पर पड़ता है। इस तरह आक्सीजन लेबल कम होने पर हार्ट अटैक होने की आशंका ज्यादा हो जाती है। इसके अलावा मरीज के फेफड़े में पानी भर जाने, निमोनिया हो जाने पर भी सांस फूलने लगती है आैर अन्य अंग प्रभावित होने लगते है।
इसके अलावा अन्य स्थितियों में आक्सीजन की कमी के कारण ब्रोन डेमेज होने, डायबिटीज मरीज का अचानक शुगर लेबल बढ़ जाता है। इसके अलावा थायराइड हार्मोन का बिगड़ने की आशंका होती है। आम तौर पर आक्सीजन लेबल कम होने के कारण हीमोग्लोबिन में आयरन की कमी होना होता है। फेफड़ों समेत पूरे शरीर में आक्सीजन को पहुंचाने में आयरन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

इस तरह आक्सीजन लेबल कर सकते है पता … इस स्थिति की पहचान के लिए आक्सीमीटर उपकरण को ऊंगली में क्लिप की तरह लगाया जाता है। वह तुरंत आक्सीजन की स्थिति बता देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आमतौर पर आक्सीमीटर पर 94-98 की रीडिंग आक्सीजन की सही स्थिति बताती है, लेकिन यह रींिडंग 92 से नीचे आ जाए, तो चिंता का विषय हो सकता है। इस समय डाक्टर का परामर्श लेना आवश्यक होता है।

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