लखनऊ । पुरुषोत्तम मास यानी की मलमास शुक्रवार से शुरू हो गया है। यह हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास आता है, इसमें जप, तप के साथ दीपदान भी अतिउत्तम फलदायी माना जाता है। 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर तक दीपदान किया जाए तो हर प्रकार की समस्या से छुटकारा मिलेगा। पुरोहित बताया कि दीपदान करने से हमारी साधना सीधे अपने ईष्ट देव तक पहुंचती है। इस माह में दीपदान के लिए मंदिर में दीप जलाएं, पीपल के नीचे रखे आैर तुलसी के पास दीपक चलाएं। इसके साथ ही अधिक मास में आँवला और तिल के उबटन से स्नान पुण्यदायी है और स्वास्थ्य प्रसन्नता में बढ़ोतरी करने वाला है। अगर उबटन उपलब्ध न हो तो आँवला, जौ, तिल का मिश्रण बनाकर रखो और स्नान करते समय थोड़ा मिश्रण बाल्टी में डाल दिया। इससे भी स्वास्थ्य और प्रसन्नता पाने में मदद मिलती है। इस मास में आँवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करना अधिक प्रसन्नता और स्वास्थ्य देता है।
ज्योतिषियों की माने तो इस मास में पुण्यकर्म कई गुना फलदायी होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्वयं श्रीहरि से उन्हें स्वीकार करने का निवेदन किया। तब श्रीहरि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्तम। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्व माना गया है, साथ ही व्रत, तप, जप आैर दान पुण्य करने का कई गुना फल बढ़ जाता है। आश्विन मास में वर्ष 1982, 2001 में अधिकमास का सुयोग आया था। अधिकमास के कारण चातुर्मास चार बजाए पांच महीने का है।
इस बार शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर से शुरू होंगे। मां का आगमन पालकी पर होगी आैर 26 अक्टूबर दशमी तिथि पर महिष पर विदाई होगी। इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को दीपावली भी काफी बाद में 14 नवम्बर को मनाई जाएगी। इसके बाद 25 नवम्बर को देवउठनी एकादशी होगी, जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे।
ऐसा होता है अधिक मास
लखनऊ। भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को संतुलन के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।