कोविड-19 ने पोषण अभियान की गति को प्रभावित किया है: विशेषज्ञ

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उत्तर प्रदेश सरकार खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ाने, पोषण संकट से निपटने और राज्य में किसी को भी भूखा नहीं सोने देने को सुनिशिचत करने के लिए बारह सौ करोड़ रूपए निवेश/खर्च कर रही है

NEWS- शायद ही कोई ऐसा बचा हो जिसे कोविड-19 ने प्रभावित नहीं किया है। हाल ही में यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि अगले छह महीनों में प्रतिदिन लगभग छह हजार बच्चों की मौत ऐसे कारणों से हो जाएगी जिनकी रोकथाम संभव है, क्योंकि कोविड-19 महामारी ने नियमित सेवाओं को बाधित करते हुए स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को कमजोर कर दिया है। पोषण माह में, पोषण सुरक्षा और राष्ट्रीय पोषण कार्यक्रमों पर चर्चा करने के लिए; प्रतिरोध समस्या: आयुर्वेद, योगा और प्राकृतिक चिकित्सा: प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़ते हुए ‘स्वास्थ्य सेवा के लिए समर्पित समूह’–हील फाउंडेशन ने आईसीसीआईडीडी के सहयोग से ‘इंडिया इम्युनिटी– ई-समिट 2020 : ‘इष्टतम/सर्वोत्कृष्ट प्रतिरक्षण को बनाए रखने में खाद्य और पोषण संतुलन विज्ञान’ का आयोजन 17 सितंबर को किया गया। इसके पश्चात ‘इम्युनिटी चैम्पियंस ऑफ इंडिया अवार्ड्स’ प्रदान किए गए। इस आयोजन के मीडिया सहयोगी एक्सप्रेस हेल्थकेयर और नेम पार्टनर फुड एंड न्युट्रीशन सिक्युरिटी थे।

जब यूनिसेफ इंडिया के पोषण प्रमुख अर्जन वाग्ट से कोविड-19 के कारण भारत में बच्चों के बीच कुपोषण की वर्तमान स्थिति और इस खतरे से उबरने के संभावित उपायों पर पूछा गया तो उन्होंने ‘इंडिया इम्युनिटी ई-समिट 2020’ को संबोधित करते हुए कहा, “जहां तक भारत में कुपोषण की बात करें तो पिछले साल लैंसेट द्वारा किए अध्ययन में यह तथ्य उभरकर आया था कि भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की दस लाख चार हजार मौतों में से अभी भी दो-तिहाई कुपोषण के कारण होती हैं। और कोविड-19 के दौरान, यह 10-20 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं। लेकिन सरकार अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से काम कर रही है। हमें प्रधानमंत्री के रूप में एक अच्छा नेतृत्व मिला है, क्योंकि बेहतर परिणाम प्राप्त करने में नेतृत्व सबसे प्रमुख भूमिका निभाता है।”
श्री वाग्ट ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “कोविड-19 ने पोषण अभियान की गति को प्रभावित और पोषण संकट को प्रेरित किया है। हालांकि, वर्तमान में जारी पोषण माह में हम देख रहे हैं कि गति वापस आ रही है, और मुझे उम्मीद है कि पोषण अभियान 1.2. देखे। सरकार को चाहिए की वो गति को बनाए रखे और कोविड-19 से लड़ने के लिए अधिकतम विस्तार, निरंतरता, तीव्रता और गुणवत्ता के साथ इसे फिर से पटरी पर लाए जाने की आवश्यकता है। मेरी राय में, एक वर्ष में एक के बजाय, 12 पोषण माह और 52 स्तनपान सप्ताह होने चाहिए। माता-पिता बच्चों के पोषण में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं, इसलिए उन्हें प्रतिरक्षा को बढ़ाने में पोषण के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।”
वीएफ, इंडिया के प्रतिनिधि और कंट्री/स्थानीय निदेश बिशो पराजुली ने पोषण और प्रतिरक्षा पर इस तरह के संवादों के संचालन के सार और आवश्यकता पर विस्तारपूर्वक चर्चा करते हुए ‘इंडिया इम्युनिटी ई-समिट 2020’ के दौरान अपने संबोंधन में कहा, “कोविड-19 के दौरान, कुछ भारतीय राज्यों ने संकट का सामना किया है, लेकिन साथ ही कुछ राज्यों ने कोविड-19 की स्थिति से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसे कि, केरल, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश ने वास्तव में एक शानदार काम किया है। विशेषरूप से, उत्तर प्रदेश ने यह सुनिश्चित करने में काफी सक्रियता दिखाई की लोगों को बिना राशन कार्ड के भी खाद्य पदार्थ प्राप्त हो सके। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं आगे आकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी भूखा न सोए। खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ाने और खाद्य संकट से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार बारह सौ करोड़ रूपए निवेश/खर्च कर रही है।”
श्री बिशो पराजुली ने कहा, “हालांकि, कोविड-19 के कारण भूख और कुपोषण बढ़ रहा है, फिर भी सामाजिक संगठन और स्वयं सहायता समुह भूख से पीड़ित लोगों के बचाव के लिए आगे आ रहे हैं। भारत का पोषण अभियान शानदार है, यद्यपि कोविड-19 के कारण वह थोड़ा प्रभावित हुआ है। बड़े पैमाने पर पलायन के दौरान हमें भूखमरी समस्या का एहसास हुआ, इसलिए हमें पोषण मॉड्यूल को अनुकूलित करने की आवश्यकता है।”
‘इंडिया इम्युनिटी ई-समिट 2020’ को संबोधित करते हुए जीएआईएन के कंट्री/स्थानीय निदेशक श्री तरूण विज ने कहा, “अभी भी, 700 हजार बच्चे अविकसित हैं। कोविड-19 महामारी में, पहले से ही कमजोर समुह सबसे अधिक प्रभावित हुए, क्योंकि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला गड़बड़ा गई। भारत में कुपोषण और बच्चों के शरीर का सामान्य विकास न हो पाने को ध्यान में रखते हुए, सभी विकास साझेदारों को खाद्य सुदृढ़ीकरण की दिशा में काम करना चाहिए। इससे पोषण संतुलन बनाने में सहायता मिलेगी, क्योंकि पोषण जीवन की कुंजी है। पोषण की कमी मृत्यु का कारण बन सकती है।”
हील फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. स्वदीप श्रीवास्तव ने पोषण के महत्व और इसकी प्रासंगिकता के साथ प्रतिरक्षा को बढ़ाने को स्पष्ट करते हुए कहा, “भारत में कुपोषण एक बड़ी समस्या रही है। हमारे यहां पांच साल से कम उम्र के अड़तीस प्रतिशत से अधिक बच्चे अविकसित हैं और प्रजनन उम्र की पचास प्रतिशत से अधिक महिलाओं को एनीमिया है। और कोविड-19 के दौरान यह दर काफी बढ़ गई है। इस महामारी ने हमें भोजन और पोषण के महत्व तथा इष्टतम/सर्वोत्कर्ष प्रतिरक्षा प्राप्त करने में इसकी निर्णायक भूमिका को समझाया है। हमें अपने पोषण को संतुलित करने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत को कुपोषण और मोटापे के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ रहा है: अब अधिक वज़न वाले व्यस्कों के मामले लगभग कम वज़न वाले व्यस्कों के बराबर हैं। कुछ और नहीं बल्कि संतुलित पोषण ही हमें प्रतिरक्षा के वांछित स्तर को बनाए रखने में सहायता कर सकता है।”
आईसीसीआईडीडी के अध्यक्ष और एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. चंद्रकांत एस. पांडव ने कहा, “कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र विश्व बड़े पैमाने पर भयंकर पोषण संकट से गुजर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिरक्षा कमजोर हो रही है। पोषण और प्रतिरक्षा के बीच घनिष्ठ संबंधों से लोगों को अवगत कराना बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे परिदृश्य में ‘इंडिया इम्युनिटी ई-समिट 2020’ का आयोजन वास्तव में बहुत आवश्यक है और एक स्वागत योग्य कदम है।”
आईसीसीआईडीडी के बारे में: असोसिएशन फॉर इंडियन कोएलिशन फॉर कंट्रोल ऑफ आयोडीन डिफिशियंसी डिसआर्डर्स (आईसीसीआईडीडी) की स्थापना 1997 को आयोडीन डिफिशियंसी डिसआर्डर और दूसरे माइक्रो-न्युट्रिएंट्स (सूक्ष्म-पोषकों), पोषण व स्वास्थ्य सेवा वितरण, पर्यावरण और समुदाय में विकास तथा समाधान सुझाने के पर शोध करने के लिए की गई थी।

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