डॉक्टर से परामर्श के बिना स्टेराएड दवा का सेवन बिलकुल मत करें
लखनऊ। कोरोना संक्रमण की चपेट में आने वाला मरीज समय पर सही इलाज ना मिलने बेहाल हो जाता है। बिगड़ती तबीयत पर मरीज को समय पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और ना ही अस्पताल में बिस्तर के लिए दौड़ बात शुरू कर देता है । आमतौर पर मरीज संक्रमित होने के बाद कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत जांच के बाद दवाओं का सेवन करता है, लगभग 5 दिन बाद भी उसका बुखार और ऑक्सीजन लेवल नियंत्रित नहीं रहता है तो विशेषज्ञ डॉक्टर और अस्पताल में भर्ती की कोशिश शुरू कर देता है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ दवाओं के डोज में थोड़ा सा परिवर्तन कर दिया जाए ,तो मरीज को जल्द से जल्द राहत मिलना शुरू हो जाती है। इलाज कर रहे विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि अनुभव के आधार पर मरीज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हुए कुछ दवाओं के डोज में परिवर्तन किया जा सकता है। इससे मरीजों को फायदा भी हो रहा है। इससे मरीज होम आइसोलेशन में ही हालत में सुधार हो रहा है और उन्हें अस्पताल जाने और जल्द ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता ही नही पड़ रही है। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञ डॉक्टर प्रोटोकॉल के तहत ही दवाओं के सेवन का परामर्श दिया जाता है। आमतौर पर आजकल मरीजों को तेज बुखार, सर्दी जुकाम सीने में जकड़न आदि लक्षण दिखने पर डॉक्टर आरटी पीसीआर की जांच कराने का परामर्श देते हैं। मरीज की जांच में अगर रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उसकी कोरोना गाइड के अनुसार दवा शुरू कर दी जाती है। अगर नेगेटिव आती है सीटी थोरेक्स की जांच या एक्स-रे कराया जाता है , जिसमें फेफड़े में बढ़ रहे संक्रमण का स्पष्ट रूप से पता चल जाता है। इसके आधार पर डॉक्टर कोविड निमोनिया मारते हुए मरीज का इलाज शुरू कर देता है। चेस्ट में संक्रमण ज्यादा होने पर मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती भी हो रहे हैं । संक्रमण के पहले हफ्ते में मरीज प्रोटोकॉल के अनुसार दवा का सेवन करता है। फिर भी अगर उसका बुखार कम नहीं होता है और ऑक्सीजन लेवल नियंत्रित नहीं रहता है, तो उसे डॉक्टर स्टराएड लेने का परामर्श देते हैं। इन मरीजों की निर्धारित मानक के अनुसार स्टराएड लेने के बाद भी हालत में सुधार नहीं देखा गया है। इसमें विशेषज्ञ डॉक्टर अपने अनुभव के आधार पर स्टराएड के डोज में परिवर्तन करने का परामर्श दे रहे हैं।
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ वेद प्रकाश की माने तो मरीज संक्रमित होने के एक हफ्ते बाद भी सांस लेने में दिक्कत हो रही हो ,खांसी बनी हुई है, ऑक्सीजन लेवल गिर रहा है, मरीज 6 मिनट की बात या 700 कदम या 500 मीटर चलने पर उसकी सांस तेजी से फूलने लगती है। इसके साथ ही सीटी स्कैन और एक्स-रे कराने में स्पाट दिखाई दे रहे हैं, वह मरीज को दी जाने वाली स्टराएड दवा में अनुभव के आधार पर थोड़ा सा परिवर्तन कर देते हैं। इनमें (Dexamethasome) डेक्सामेथासोमन को पहले दिन 16 एमजी का एक डोज तथा दूसरे दिन 8 एमजी का डोज सुबह शाम 3 दिन तक, उसके बाद 3 दिन तक 4 एमजी का डोज सुबह शाम दिया जाता है। इसके अलावा मिथाइलप्रेडीनीसोलोन (Methylprednisolone) का पहले दिन 32 एमजी सुबह शाम, उसके बाद 3 दिन 16एमजी सुबह शाम, फिर 3 दिन 16mg एक दिन दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया इन दवाओं के बदले डोज को अपने डॉक्टर से परामर्श के बाद ही ले और खासकर डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के मरीज को लगातार अपने डॉक्टर से परामर्श लेते रहना चाहिए। डॉ वेद प्रकाश का कहना है इन स्टेरॉयड के प्रयोग से देखा जा रहा है कि मरीज फेफड़े का संक्रमण, सांस लेने की दिक्कत और बुखार पर नियंत्रण आ जाता है। उसके साथ अन्य दवाएं गाइड लाइन के अनुसार चलती रहेगी। उन्होंने बताया उनका अनुभव है कि इस डोज का परिवर्तन करने से काफी संख्या में मरीजों में तेजी से सुधार होता देखा जा रहा है। इस डोज में परिवर्तन से मरीजों के ऑक्सीजन लेवल में भी कोई गिरावट नहीं होती है और वह हॉस्पिटल जाने और ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रयोग होने से राहत पा जाता है। उन्होंने बताया कि दूसरे लहर में कोरोनावायरस बहुत तेजी से फेफड़े पर असर करता है। संक्रमण के शुरुआती दिनों में मरीज को स्टेराएड का प्रयोग नहीं करना चाहिए, परंतु दूसरे हफ्ते हैं यानी कि 5 या 6 दिन बीत जाने पर भी कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है और रिपोर्ट भी लगातार गड़बड़ आ रही है तो अपने डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद स्टेराएड के डोज में परिवर्तन कर देना चाहिए। बिना परामर्श के नहीं ।आखिरकार तबीयत तेजी से बिगड़ने पर और अस्पताल में भर्ती होने पर हैवी स्टेराएड का दिया जाता है। उन्होंने बताया स्टेराएड दवा का सेवन बिना डॉक्टर की अनुमति के नहीं करना चाहिए। डॉक्टर मरीज की स्थिति परिस्थिति के अनुसार दवा की दोष में परिवर्तन करता है, मनमाने तरीके से स्टाराएड दवा का सेवन नहीं करना चाहिए।