लखनऊ। Kgmu के क्वीनमेरी की विशेषज्ञ डॉक्टरों ने जटिल सर्जरी में एक विशेष तकनीक का उपयोग कर प्रसूता व नवजात की जान बचा ली है। क्वीन मैरी में पहली बार यह तकनीक प्रसव कराया है।
डाक्टरों के अनुसार महिला गर्भावस्था के दौरान होने वाली गंभीर बीमारी प्लासेंटा परक्रीटा सिंड्रोम से पीड़ित थीं। इस बीमारी में सर्जरी से प्रसव के दौरान रक्तस्राव अधिक होता है। ब्लीडिंग रोकने के लिए गर्भवती की दोनों जांघ से गर्भाशय तक कैथेटर संग बैलून (गुब्बारे) डाले थे। इस तकनीक में प्रसव के तुरंत बाद गुब्बारे फुला दिए। इससे करीब 40 प्रतिशत तक कम ब्लीडिंग हुई।
सुल्तानपुर निवासी गर्भवती रोशनी कश्यप को क्वीनमेरी में भर्ती के बाद डॉक्टरों ने जांच कराई। जांच में प्लासेंटा परक्रीटा सिंड्रोम बीमारी निकली। क्वीनमेरी की डॉ. निशा सिंह व डॉ. शिल्पा के निर्देशन में इलाज शुरू हुआ। डॉ. निशा ने बताया कि गर्भवती की हालत गंभीर होने से प्रसव के दौरान रक्तस्राव से महिला की जान भी जा सकती थी।
लिहाजा रेडियोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. नीरा कोहली की मदद से इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी की मदद ली गई। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था में प्लेसेंटा गर्भाशय से चिपक जाता है। कभी कभी ये गर्भाशय के बाहर भी फैल जाता है। इस मरीज के मामले में प्लासेंटा पेशाब की थैली व खून की नसों तक पहुंचा चुका था। इससे प्रसव के दौरान अत्याधिक ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ. सिंह ने बताया कि प्रसव के बाद बलूनिंग पद्धति से खून रोकने का फैसला हुआ। उन्होंने बताया कि रोशनी के दोनों जांघ से कैथेटर यूट्राइन आर्टी तक डाला गया। इसमें गुब्बारे भी लगे थे। प्रसव के तुरंत बाद कैथेटर में लगे गुब्बारों को फुला देने से ब्लड की बाहर आने से रोक दिया गया।
डॉ. निशा ने बताया कि प्रसव के बाद होने वाले रक्तस्राव से एक हजार में पांच महिलाओं की मौत हो जाती है। इसी को रोकने के लिए केजीएमयू में बलूनिंग विधि से ऑपरेशन किया है।