लखनऊ। कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद यदि चलने में परेशानी हो रही है, पंजे रखने के बाद कूल्हे में तेज दर्द हो रहा है, तो इसे नजरअंदाज न करें। यह कूल्हे की बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआती जांच में पता चलने पर इलाज करा लेना चाहिए। देरी से कूल्हा प्रत्यारोपण तक हो सकता है। यह जानकारी यूपी आर्थोपैडिक्स एसोसिएशन के संस्थापक डॉ. संदीप कपूर ने दी।
वह रविवार को गोमतीनगर स्थित एक होटल में हड्डी व जोड़ रोगों पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। डॉ. कपूर ने कहा कि कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों को अलग- अलग तरह की परेशानी हो रही है। ठीक होने के छह महीने से एक वर्ष के बाद भी मरीजों में अलग-अलग तरह की बीमारियों हो रही है। सबसे ज्यादा दिक्कत कोरोना के कारण आईसीयू में भर्ती मरीजों को हो रही है। अक्सर ठीक हो चुके मरीजों को कूल्हे की हड्डी में ब्लड सप्लाई प्रभावित होने लगती है। समय पर ध्यान न देने पर मरीज में कूल्हा प्रत्यारोपण तक कराना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर में बहुत से मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी थी। कोरोना संक्रमण के दौरान भर्ती होने पर स्टराइड का असर कूल्हें पर असर पर हो रहा है। कूल्हे की बॉल व दूसरी हड्डी में ब्लड की आपूर्ति बाधित होती है। इससे कूल्हे की बॉल सूखने लगती है आैर मूवमेंट प्रभावित होती है।
गुजरात के डॉ. कश्यप अर्देशना ने बताया कि कोविड से पहले हड्डी की बीमारी के मरीज छह माह में एक ओपीडी में आता था। अब यह संख्या बढ़ रही है। सात दिन में दो से तीन मरीज आ रहे हैं। इन सभी को शुरुआत में इस बीमारी के हल्के लक्षण नजर आते हैं। बाद में मरीज का चलना-फिरना पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जाता है। डाक्टर के परामर्श के बाद दवा और आराम करने से बीमारी 40 प्रतिशत तक मरीजों में ठीक हो जाती है। परन्तु थोड़ा भी लापरवाही बरतने पर 60 प्रतिशत मरीजों को सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। गुजरात के डॉ. जिगनेस पांडया ने बताया कि एमआरआई जांच ने हड्डी की सर्जरी की सफलता दर में वृद्धि की है। अभी तक एक्सरे रिपोर्ट के आधार पर ऑपरेशन किए जाते थे। अब फ्रैक्चर या बीमारी को पकड़ने के लिए एमआरआई जांच ज्यादा कारगर है।
डॉ. संदीप गर्ग ने बताया कि नए इम्प्लांट ने हड्डी के मरीजों का इलाज आसान कर दिया है। टाइटेनियम से निर्मित इम्प्लांट मरीज की स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। शरीर में इन इम्प्लांट की दिक्कतें व एजर्ली की आशंका बहुत कम हो जाती है। साथ ही सर्जरी के दौरान फ्रैक्चर के अनुसार प्लेट को मोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। अब अलग अलग साइज की प्लेट अाने लगी है।