लखनऊ। डायबिटिज बुजुर्गों के साथ-साथ युवाओं को भी बड़ी संख्या में अपना शिकार बना रहा है। आंकड़ों को देखा जाए तो भारत की 10 फीसदी से अधिक आबादी इस बीमारी की चपेट में है। वही डायबिटिज रोगियों में 17 फीसदी से ज्यादा मरीज भारत में पाए जाते हैं। वहीं थ्री-डी फार्मूले को अपनाकर डायबिटिज पर काबू पाया जा सकता है।
यह बात शुक्रवार को डॉ. रजनीश श्रीवास्तव ने प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में कही। अपने संबोधन में उन्होंने थ्री-डी फार्मूले का जिक्र करते हुए बताया कि डी थ्री में पहला डी डाइट है। दूसरा डी दवाइयां और तीसरा अनुशासन है। इन तीनों पर ध्यान देते हुए इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है। अधिकांश टाइप-2 डायबिटिज मरीज ऐसे परिवारों से संबंधित होते हैं जिनके कोई न कोई सदस्य टाइप-2 डायबिटिज अथवा उससे संबंधित अन्य रोगों जैसे हाई कोलेस्ट्रोल, हाई ब्लड प्रेशर से ग्रसित रहे हैं, ऐसे मरीजों को उनके जीवनकाल में टाइप-2 डायबिटिज होने की संभावना उन लोगों की अपेक्षा 5-10 गुना अधिक होती है, जिनके परिवार के सदस्यों की डायबिटिज हिस्टी नहीं है।
डॉ. कालिन्दी श्रीवास्तव ने शिशु के लिए प्रेग्नेंसी में शुगर से होने वाले नुकसान के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि गर्भवस्था के एक से 3 माह के दौरान में महुमेह अधिक होने पर बच्चे में विकार आ जाता है। उन्होंने बताया कि शिशु एक्स्ट्रा शुगर को फैट के रूप में स्टोर करता है जो उसका साइज बड़ा कर सकता है। इसको मोक्रोसोमी कहते है। उन्होंने कहा कि प्रेगनेंसी में शुगर होने से जन्म के बाद शिशु का लो ब्लड शुगर हो सकता है। उसे पीलिया हो सकता है। इन बच्चों में मोटापा और डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। आहार, व्यायाम, दवाओं एवं इंसुलिन के जरिए इसके उपचार की कही।