लखनऊ। कोशिश करना चाहिए कि जन्म से लेकर 15 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को मोबाइल की लत न लगने पाये आैर वह इससे दूर रहें। इस उम्र में दिमाग का तेजी से विकास होने का वक्त होता है। मोबाइल से निकलने वाली विकरण दिमाग की तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती हैं। यह बात वरिष्ठ रेडियोथेरेपिस्ट डॉ. श्याम सिंह विष्ट ने शनिवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के शताब्दी फेज-दो में रेडियोथेरेपी विभाग के प्रेक्षागृह में आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
डॉ. विष्ट ने कहा कि बच्चों का दिमाग का बाल्यावस्था में तेजी से विकसित होता है। ऐसे में किसी भी तरह का रेडिएशन दिमाग के क्षमता प्रभावित कर सकता है। कोशिकाओं को हानि पहुंच सकता है। इसके लिए बच्चों को मोबाइल देने की कोशिश करना चाहिए। उन्होंने बताया कि अभी तक मोबाइल से ब्रोन ट्यूमर होने के पुख्ता सुबूत नहीं मिले हैं। फिर भी इससे बचाव की आवश्कता है।
केजीएमयू रेडियोथेरेपी विभाग के प्रमुख डॉ. एमएलबी भट्ट ने कहा कि हर वर्ष देश में 20 से 30 हजार लोग ब्रोन ट्यूमर की चपेट में आ रहे हैं। प्रत्येक वर्ष देश में 20 हजार ब्रोन ट्यूमर के मरीजों की मौत हो रही है।
डॉ. श्याम ने बताया कि ब्रोन ट्यूमर के लिए बारे में कहा कि कई तरह के जीन जिम्मेदार होते हैं। उन्होंने बताया कि एपीआरएक्स, आईडीएच म्यूटेशन से लोग्रोथ का ब्रोन ट्यूमर की आशंका रहती है। यह ट्यूमर बच्चों में ज्यादा होते है, जबकि देखा जाए तो पी-53 हाई ग्रेड ट्यूमर होता है। यह अधिक उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेता है।
रेडियोथेरेपी विभाग के डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि खेती में फसल को बेहतर रखने के लिए कीटनाशक का बेहिसाब इस्तेमाल किया जा रहा है। लंबे समय से खाद्य वस्तुओं को सुरक्षित रखने में भी रसायन का प्रयोग हो रहा है। स्वास्थ्य की सलामती के लिए डिब्बा बंद भोजन के सेवन से बचें।