लखनऊ। यदि किसी व्यक्ति को बार-बार कंधा उतारने यानी शोल्डर डिस्लोकेशन की परेशानी हो रही हो, तो उसे आर्थोपैडिक के विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए। इसमें आर्थोस्कोपी की तकनीक से सर्जरी काफी हद तक सफल हो सकती है। बिना चीरा लगाए इस तकनीक से कम समय में बेहतर इलाज और जल्द सुधार हो सकता है। यह बात स्पोर्टस इंजरी सेंटर सफदरजंग अस्पताल के डा. विवेक महाजन ने कही।
डा. महाजन रविवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के एनाटामी विभाग में घुटने और कंधे के जोड़ों पर आर्थोस्कोपी तकनीक सीखने के लिए कैडेवरिक वर्कशाप में सम्बोधित कर रहे थे। इस कार्यशाला में असम, दिल्ली समेत देशभर के कई विशेषज्ञों ने भाग लिया।
डा.महाजन ने कहा कि इस तरह की कार्यशाला में हम सब तकनीक को किसी देह पर प्रयोग करके उसकी गहराई तक पड़ताल कर सीख सकते हैं। इस दौरान सर्जरी की बारीकियों को जान सकते हैं। इससे किसी मरीज पर सर्जरी करना सरल हो जाता है।
स्पोर्टस सर्जरी विभाग के प्रमुख डा. आशीष ने बताया कि चीरा लगाकर सर्जरी करने में मरीज को कुछ दिनों तक बिस्तर पर ही लेटे रहना होता है। इलाज के बाद रिकवरी में भी समय लगता है और कई अन्य सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं। वहीं, आर्थोस्कोपी भी तकनीक में महज दो छेद कर वही सर्जरी की जा सकती है। इसमें समय कम लगता है और दूसरे दिन से ही मरीज चाहे तो काम पर लौटने की संभावना बन जाती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में यहां प्रक्रिया थोड़ी महंगी है, क्योंकि हर विशेषज्ञ को इसकी जानकारी नहीं है।
सफदरजंग से डा. दविंदर सिंह ने कहा कि जोड़ों के कारण आजकल युवा और काम करने वाले लोग अधिक परेशान रहते हैं ऐसे में घुटने और कंधे की सर्जरी में कई अत्याधुनिक तकनीक से सर्जरी करने से उनका समय भी बचता है और उनकी कार्यशैली पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। कार्यक्रम में डा स्कंद सिन्हा सहित अन्य वरिष्ठ डाक्टर मौजूद थे।