दो वर्ष में शिशु को खसरा हुआ , तो हो सकती है न्यूरो की यह बीमारी

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केजीएमयू में जार्जियन मीट में कार्यशाला

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लखनऊ। जन्म के दो वर्ष के भीतर शिशुओं को खसरा की बीमारी होती है, तो उनमें न्यूरो की गंभीर बीमारी सबएक्यूट स्क्लेरोसिंग पैनेंसेफेलाइटिस (एसएसपीई) का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। उन बच्चों को खतरा कई गुना ज्यादा होता है, जिनका खसरे का टीकाकरण नहीं होता है। अभी तक एसएसपीई का कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है। विशेष दवाओं से शिशुओं की उम्र बढ़ायी जा सकती है। यह बात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. आरके गर्ग ने कही।

अंतर्राष्ट्रीय जॉर्जियन मीट के कार्यक्रम के क्रम में केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रेक्षागृह में सेमिनार का आयोजन किया गया। डॉ. गर्ग ने कहा कि एसएसपीई एक दुर्लभ और जटिल बीमारी है। इसमें 12 से 14 साल की उम्र में बच्चा मानसिक रूप से कमजोर होने लगते हैं। कुछ ही महीने में बच्चा मंदबुद्धि जैसा हो जाता है। बच्चें को धीरे-धीरे झटके आना शुरू हो जाता हैं। देखा गया है कि नींद में बच्चे को झटके नहीं आते हैं। जागते हुए बच्चे को झटके बहुत परेशान करते हैं। बच्चें को प्रत्येक मिनट व कुछ सेकेंड के अंतराल में बच्चे को झटके का दर्द सहना पड़ता है।

डॉ. आरके गर्ग ने बताया कि आंकड़ों को देखा जाए तो तीन से चार वर्ष में एसएसपीई पीड़ित बच्चों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। इसकी बड़ी वजह कोरोना वायरस है। दरअसल कोरोना काल में टीकाकरण ठप रहा, अभिभावकों ने भी खसरे को गंभीरता से नहीं लिया। ऐसे में टीकाकरण अभियान सफल नहीं रहा। खतरा से बचाव का टीका न लगने से एसएसपीई की समस्या गंभीर हो गयी है। केजीएमयू में प्रत्येक वर्ष एसएसपीई पीड़ित 30 से 40 मरीज आ रहे हैं। कोरोना काल से पहले ऐसे मरीजों की संख्या 10 से 15 के बीच थी।
बंगलूरु निमहैंस के डॉ. रवि यादव ने बताया कि भारत में बीते छह महीने के दौरान 14927 मामले आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि यमन के बाद भारत दूसरा देश है, जहां इतने मरीज आ रहे हैं।

यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ डॉ. राजेश वर्मा ने कहा कि डॉक्टर के परामर्श पर बच्चों को सभी टीके लगवाएं। सरकारी अस्पतालों में सभी टीके मुफ्त लगाए जा रहे हैं। इससे काफी हद तक इस गंभीर बीमारी की रोकथाम कर सकते हैं। कार्यक्रम में डॉ. श्वेता पांडे, डॉ. भास्कर शुक्ला डॉ. एचएस मल्होत्रा, स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त निदेशक डॉ. विकाससेंदु अग्रवाल, डॉ. अजय कुमार सिंह, डॉ. अब्दुल कवी और डॉ. विजय वर्मन, डॉ. संजीव झा और पीजीआई के डॉ. विमल कुमार पॉलीवॉल मौजूद रहे।

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