लखनऊ। हमारे समय में रैगिंग के अपने नियम होते थे। यानी सीनियर डांटते-फटकारते थे, पर बाद में सहयोग भी करते थे। यह बात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. सुमित रुंगटा ने प्रशासनिक भवन में 1998 बैच का पुरातन छात्र सम्मेलन कही।
सम्मेलन में विश्व भर में केजीएमयू का परचम फहरा रहे डॉक्टर्स शामिल हुए। पुरातन छात्रों के सिल्वर जुबली सम्मेलन में बहुत से जार्जियन्स ने 15 से 20 वर्षो बाद केजीएमयू आये। यहां पर पुराने भवन और हॉस्टल को देख छात्र भावुक हो गये।
डॉ. सुमित रुंगटा ने कहा कि 1998 में अप्रैल के तीसरे शनिवार को हॉस्टल की मेस बंद थी। हम करीब 15 दोस्त चौक के एक रेस्त्रां में बैठे भोजन कर रहे थे। तभी तीन सीनियर आ गए। सीनियर को देख हम सब घबरा गए। वह हमारे पास आ गए। साथ में बैठकर खाना खाया। जब पैसे देने की बारी आई तो सीनियर खुद बिल का भुगतान किया। रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के डॉ. अजय वर्मा ने कहा कि एडमीशन लेने के बाद जैसे ही मैं हॉस्टल पहुंचा। सीनियर का फरमान मिला कि दाड़ी-मूछ कटाने के साथ घुटनों तक एप्रिन ही पहनों। नजर एप्रिन के तीसरे बटन पर रखने की निर्देश दिये गये थे।
वर्षो बाद फ्लैश बैक हुआ तो दुबई में बसे डॉ. अकांक्षा गांधी, डॉ. अमित गुप्ता, अमेरिका के बोस्टन से डॉ. गौरव जैन, फ्लोरीडा से डॉ. श्वेता श्रीवास्तव भावुक हो गयी। केजीएमयू हड्डी रोग विभाग के डॉ. धर्मेद्र कुमार, मेडिसिन विभाग में डॉ. अजय पटवा, रेडियोथेरेपी विभाग की डॉ. मृणालिनी वर्मा, पीजीआई एनस्थीसिया विभाग के डॉ. प्रतीक की शरारतों को याद कर ठहाके लगाए।
पुरातन छात्र सम्मेलन में केजीएमयू के कई शिक्षकों ने भी शिरकत की, जिसमें प्रतिकुलपति डॉ. अपजीत कौर, माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. अमिता जैन, डॉ. अशोक चन्द्रा, डॉ. डीआर सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. संजीव मिश्र, लोहिया में सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग के डॉ. आकाश अग्रवाल समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।