लखनऊ। क्रिटकल केयर में क्लीनिल अपडेट तेजी से हो रहे है। अब वेंटिलेटर पर क्लीनिकल ट्रीटमेंट बदलने की आवश्यकता है। नये क्लीनिकल अपडेट में अब डिजिटल पीसीआर इलाज में बहुत कारगर साबित हो रहा है। इससे मरीज के शरीर में बैक्टीरिया का सटीक पता चल जाता है आैर लाइन आफ ट्रीटमेट बदल जाता है।
इसके अलावा सभी डायलिसिस मरीजों अलग – अलग डायलिसिस की जाती है। इसके लिए मरीजों की जांच कर डाक्टर तय करता है कि कौन सी डायलिसिस आवश्यक है। यह जानकारी केजीएमयू के क्रिटकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख डा. अविनाश अग्रवाल ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं सोसाईटी ऑफ प्रिसीजन मेडिसिन एवं इंटेन्सिव केयर मेडिसिन के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय प्रिसीजन मेडिसिन एवं इंटेन्सिव केयर (पीएमआईसी) की कार्यशाला में कही।
लगभग 250 विशेषज्ञ डाक्टरों के द्वारा प्रिसीजन मेडिसिन एवं इंटेसिव केयर की इस कार्यशाला में सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाएगा।
डा. अविनाश ने बताया कि वेंटिलेटर पर मरीज अक्सर बैक्टीरिया संक्रमण की चपेट में आ जाते है। सैप्सिस के अलावा व एक्यूट डिस्ट्रेस सिड्रोम भी हो सकता है। नयी तकनीक से बैक्टीरिया की जांच सभंव हो सकता है।
कार्यशाला के प्रथम चरण में पर्सनलाईज्ड मैकेनिकल वेंटिलेशन इन आईसीयू विषय पर क्रिटकल केयर एवं इन्टेन्सिव केयर के विशेषज्ञों द्वारा चिकित्सकों को सैद्धांतिक एवं प्रयोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत डा. इंदूबाला मौर्या, एसोसिएट प्रोफेसर, निश्चेतना विभाग, कल्याण सिंह अतिविशिष्ट कैंसर संस्थान द्वारा “आईसीयू में मैकेनिकल वेंटीलेशन की शुरूवात कैसे करे। डा. हेमंत कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग, डा राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, “हाईपरकेपनिक श्वसन विफलता वाले मरीज को वेंटिलेटर पर लेते समय व्यक्तिगत दृष्टिकोण कैसे अपनाये” विषय पर चिकित्सकों को सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया।