इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस तकनीक कारगर

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लखनऊ। इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस में हाईटेक इलाज मरीजों को दिये जाने के लिए लगातार तकनीक में अपडेट हो रहा है। सिलिकॉन के अलावा कृत्रिम अंगों के निर्माण के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग हो रहा है।

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उच्चस्तरीय चिकित्सा देने के लिए अधिक संख्या में प्रशिक्षित प्रोस्थोडोंटिस्ट की आवश्यकता है और इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। यह बात आयोजन अध्यक्ष डॉ. पूरन चंद ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रोस्थोडॉन्टिक्स और क्राउन एंड ब्रिाजेस विभाग एवं माहीडोल विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आज दूसरा दिन कही।
डा. पूरन ने कहा कि रेटिनोब्लास्टोमा के मरीजों के लिए उच्चस्तरीय तकनीक से आई प्रोस्थेसिस का निर्माण हो रहा है।

कार्यशाला में मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थोडॉन्टिक्स में डॉ. तीर्थवज श्रीथवज ने चेहरे के विकृतियों के प्राकृतिक रूप में पुन: निर्मित करने के अपने 25 वर्षों के चिकित्सीय अनुभव पर तकनीक की जानकारी दी। डॉ. नाथधनई ने कृत्रिम अंग की मूल बातें समझाईं और डॉ. बिनित श्रेष्ठ ने इम्प्लांट रिटेन्ड नेत्र जैसे कृत्रिम अंग की तकनीकी जानकारी दी। इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस और नए कंप्यूटराइज़्ड कैड -कैम प्रोस्थेसिस के विभिन्न लाभों और समस्याओं पर विस्तृत चर्चा की गयी। नेत्र प्रोस्थेसिस बनाना सिखाया गया। जिसमें आईरिस स्टेनिंग, नेत्र प्रोस्थेसिस का मोम पैटर्न और स्टेनिंग के साथ सिलिकॉन पैकिंग शामिल थी।

प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला के माध्यम से उपयोग की जाने वाली नई तकनीक के बायोकॉम्पेटिबल सामग्रियों और उनके प्रयोग विधि के बारे में सिखाया गया।
डॉ बलेन्द्र प्रताप सिंह , डॉ रघुबर दयाल सिंह ,डॉ भास्कर अग्रवाल तथा डॉ शुचि त्रिपाठी आदि चिकित्सा शिक्षकों ने प्रतिभागी चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने में सक्रिय योगदान दिये।

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