लखनऊ। चिकित्सा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मददगार साबित हो रही है। इससे मरीज का सटीक डायग्नोसिस बनाने में सहायता मिल रही है, लेकिन इसका यह मतलब न माना जाए कि यह डॉक्टर को रिप्लेस सकती है। यह बात माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. ज्योत्सना अग्रवाल ने बुधवार को लोहिया संस्थान नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही।
प्रो. अग्रवाल ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से समय पर और सही जांच हो सकेगी। उन्होंने उदाहरण देते हुये बताया कि काफी मरीजों में टीबी की जांच के दौरान उनके बलगम की जांच माइक्रोस्कोप की मदद से करनी होती है, लेकिन यदि हमारे पास प्रशिक्षित जांचकर्ता कमी हैं, तो एक सॉफ्टवेयर बनाया जा सकता है। जो टीबी के बैक्टीरिया की पहचान कर सकता है। इसकी मदद से सैकड़ों स्लाइड की जांच हो सकती है। इसके बाद में विशेषज्ञ डॉक्टर उन स्लाइड को देखकर जांच को पुष्टि कर सकता है।
#
प्रो. ज्योत्सना अग्रवाल ने कहा कि बिना डॉक्टर के सलाह किसी भी दवाओं का सेवन दिक्कत पैदा कर सकता है। बिना परामर्श ज्यादा सेवन से जान पर भी बन सकती है। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर ही दवाओं का सेवन करना चाहिए। खुद से दवा लेने के दो नुकसान है, पहला की आप जिस बीमारी का इलाज कर रहे हैं, उसकी आपको जानकारी ही नहीं है। इससे बीमारी धीरे धीरे बढ़ती जायेगी। वहीं दूसरा नुकसान यह है कि जो आपने दवा का सेवन किया, वह नुकसान भी कर सकती है। इसलिए सेल्फ ट्रीटमेंट कर रहे हैं, तो सावधान हो जायें। डॉक्टर की सलाह पर दवा लेने से ही सही इलाज होता है। बहुत से लोग सर्दी जुकाम होने पर कोई भी एंटीबायोटिक खा लेते हैं।
माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग के डा. विक्रमजीत सिंह ने बताया कि डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में 11वें वार्षिक समाचार पत्र के विमोचन के साथ-साथ “डायग्नोस्टिक पैरासिटोलॉजी में एआई उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग यानी की नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज के इलाज में एआई अहम भूमिका निभा सकती है। इससे बीमारी की जांच जल्द और सस्ती हो सकती है।
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 31 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग हैं, जिनमें से 12 भारत में मौजूद हैं। जिसमें मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार, न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस आदि शामिल हैं। इस अवसर पर
निदेशक प्रोफेसर सीएम सिंह ने बताया कि इस तरह के कार्यक्रम उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के बारे में जागरूकता पैदा करते हैं।