10वां यूपीओए आर्थोप्लास्टी कोर्स 2024 कार्यक्रम
लखनऊ। पिछले पचास वर्षो में आर्थराइटिस के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गयी है। इससे घुटना प्रत्यारोपण के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है, परन्तु प्रत्यारोपण ही अंतिम विकल्प नहीं है। समय पर नयी तकनीकों का प्रयोग व दवाओं के सेवन से प्रत्यारोपण से बचाया जा सकता है। यह जानकारी एम्स भोपाल के निदेशक व पीडियाट्रिक आर्थो सर्जरी के विशेषज्ञ प्रो. अजय सिंह ने यह बात रविवार को लखनऊ ऑर्थोपेडिक सोसायटी और केजीएमयू ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग की ओर से होटल क्लार्क अवध में 10वां यूपीओए आर्थोप्लास्टी कोर्स 2024 कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम में यूपीओए के अध्यक्ष डॉ. केडी त्रिपाठी, आर्थोपैडिक विभाग के प्रमुख डा. आशीष कुमार, डॉ. पियूष मिश्रा, डॉ. संतोष सिंह, डॉ. शैलेंद्र सिंह, डॉ. विनीत शर्मा आदि ने घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण की नई तकनीक, रोबोटिक सर्जरी आदि के बारे में जानकारी साझा की।
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कार्यक्रम में आर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री डा. मयंक महेंद्रा ने कहा कि मात्र छह इंच के चीरे से ही मरीज का घुटना व कूल्हा प्रत्यारोपण होने लगा है। अभी तक आठ से नौ इंच का चीरा लगाया जाता था। इससे घाव जल्दी भरता है। मांसपेशियों को नहीं काटना पड़ता है। खून कम बहता व संक्रमण का खतरा भी बहुत कम होता है।
डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि अब 50 साल की उम्र वाले लोग भी कूल्हा व घुटना प्रत्यारोपण करवा रहे हैं। इसमें घुटना प्रत्यारोपण वालों की संख्या अधिक है। अनियमित खानपान, अधिक तनाव व ज्यादा वजन, कमजोर हड्डियों की वजह से कम उम्र में भी लोगों को घुटने की समस्या पैदा हो रही है। नई तकनीक से बने इंम्प्लांट भी अब अधिक समय तक चलते हैं। लखनऊ आर्थोपेडिक सोसायटी के अध्यक्ष व सिविल के आर्थो सर्जन डॉ. जीपी गुप्ता ने बताया कि अधिक रनिंग करने वाले लोगों को भी घुटने की अधिक समस्या होती है। खासकर जिन लोगों का वजन अधिक होता है। हड्डी मजबूत नहीं होती और कैल्शियम की कमी होती है तो उन लोगों को अधिक दौड़ नहीं लगानी चाहिए।
आर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. आशीष कुमार ने बताया कि अब पूर्व में प्रत्यारोपण करवाने वाले लोग भी रिवीजन सर्जरी के लिए अधिक संख्या में पहुंच रहे हैं। जिनका लगभग 15 या 20 वर्ष पहले घुटना या कूल्हा प्रत्यारोपण करवाया है। इनको दोबारा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ रही है। अब ऐसे लोगों की आधुनिक तकनीक व मशीनों से प्रत्यारोपण किया जा रहा है।