लखनऊ। डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान प्रशासन करोड़ों रुपये के घोटाले की जांच में उदासीनता बरत रहा है। देखा जाए तो केवल संविदा कर्मचारियों पर कार्रवाई कर जिम्मेदार अधिकारियों को को बचाया जा रहा है।
लोहिया में मरीजों को इलाज के लिए शुल्क कैश व ऑनलाइन जमा करना पड़ता है। इसमें अधिकारी व कर्मचारियों ने साठगांठ कर ऑनलाइन शुल्क जमा करने के व्यवस्था में गड़बड़ी की थी। इसमें करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ था। शिकायत के बाद घोटाले की जांच गयी।
आलम यह था कि चार महीने तक कमेटी घोटाले की रकम का पता तक नहीं लगा पाए थे। जांच में कुछ न मिलने पर काउंटर पर तैनात आधा दर्जन संविदा कर्मचारियों पर कार्रवाई करते हुए उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। कुछ कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज कराया। फिर मानव सेवा प्रदाता कंपनी से लगभग सवा करोड़ रुपये जुर्माना भी वसूला था, लेकिन खास बात थी कि करोड़ों की घोटाले में किसी भी नियमित कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि पूरी व्यवस्था में ओपीडी से लेकर प्रशासनिक पदों पर तैनात आधा दर्जन से अधिक अधिकारी व नियमित कर्मचारियों पर गाज गिर सकती थी, जिम्मेदार अधिकारियों को बचाकर संविदा कर्मचारियों पर कार्रवाई हो गयी।
इसी प्रकार हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड (एचआरएफ) से मरीजों को सस्ती दर पर मिलने वाली दवाओं में भी लगभग अस्सी लाख रुपये की दवाएं की गड़बड़ी की गयी। यह गड़बड़ी कई महीनों से चल रहा थी, मामला की गड़बड़ी पता चलने पर तीस संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया। नियमित फार्मासिस्ट, एचआरएफ के अधिकारियों पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।