लखनऊ। विश्व डायबिटीज डे के अवसर एरा यूनिवर्सिटी में जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में एरा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अब्बास अली महदी ने कहा कि डायबिटीज की समस्या आम हो गई। यह केवल खानपान या मानसिक तनाव से ही नहीं बढ़ती। डायबिटीज बढऩे की एक बड़ी वजह कैमिकल स्टे्रस भी है। कूड़ा, प्रदूषण व कीटनाशक का अधिक प्रयोग भी व्यक्ति के लिए भीतर कैमिकल स्ट्रेस पैदा कर रहे हैं जिस वजह से लोग डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं।
कार्यक्रम में मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर एसीपी इण्डिया के आरएसएसडीआई नेशनल प्रेसीडेंट इलेक्टेड गवर्नर डॉ. अनुज महेश्वरी व इंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. अरूण पाण्डेय ने डायबिटीज के कारण और उसके इलाज पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर एराज लखनऊ मेडिकल कालेज एण्ड हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रो. वैभव शुक्ला और प्रोफेसर जलीज फतिमा भी मौजूद थीं। प्रो. अब्बास अली महदी ने अपने सम्बोधन में कहा कि डायबिटीज किसी एक अंग की बीमारी नहीं है यह शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करती है। आज जो आंकड़े डायबिटीज के आ रहे हैं वह काफी कम हैं। बहुत से लोगों में डायबिटीज की पहचान ही नहीं हो पाई है क्योंकि वह अपनी जांच नहीं करा रहे। इसे अनडायग्नोस डायबिटीज कहा जा सकता है। मौजूदा समय में मधुमेह को रोकने के कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। उन्हें जागरुक करना होगा कि यह बीमारी होने पर उनके शरीर को क्या नुकसान हो सकता है। यह रोग लिवर और किडनी के साथ हृदय पर बुरा प्रभाव डालता है जिससे कई गंभीर रोग हो सकते हैं। कार्यक्रम में प्रो. जलीज फातिमा ने बताया कि लोगों की लापरवाही का नतीजा है कि युवाओं में भी डायबिटीज हो रहा है। अगर लोग अपनी लाइफ स्टाइल में सुधार कर लें तो इस रोग पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। आज तीन से पांच प्रतिशत डायबिटीज रोगी अस्पताल आ रहे है। इसे जागरुगता से कम किया जा सकता है। प्रो. वैभव शुक्ला ने बताया कि वर्तमान में देश में करीब 1.1 मिलियन लोग डायबिटीज के शिकार हैं। यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इसे रोकना बहुत जरूरी है। मधुमेह मरीज को धीरे-धीरे बीमार कर देता है और वह कई अन्य बीमारियों की चपेट में आ जाता है। अगर इलाज न किया जाए तो मरीज की हालत गंभीर हो सकती है।
इंसुलिन की फिक्स डोज न दें
डॉ. अरूण पाण्डेय ने बताया कि टाइप-2 डायबिटीज पीडि़त रोगी को इंसुलिन की जरूरत होती है। अधिकांश रूप से लोग मरीज को डाक्टर द्वारा बताई इंसुलिन की तय डोज देने लगते हैं। डोज की यह मात्रा महीनों उसी प्रकार दी जाती है। यह उचित नहीं। रोगी की डायबिटीज की जांच करते रहें और उसकी के आधार पर इंसुलिन की डोज दी जानी चाहिए। कई मरीज तो ऐसे होते हैं जिनका ब्लड शुगर लेवल दोपहर के खाने के बाद कम और रात के खाने के बाद ज्यादा बढ़ जाता है। कभी कभी इसका उल्टा भी हो सकता है। ऐसे मरीजों में दिन और रात की इंसुलिन की डोज भी अलग-अलग होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि लोगों के भीतर यह भ्रांति भी है कि इंसुलिन लेने से उनकी किडनी पर असर पड़ेगा। इसलिए वह इंसुलिन नहीं लेते। उन्होंने सलाह दी कि ऐसा न करें। शुगर लेवल अगर अधिक बढ़ गया है तो इंसुलिन जरूर लें। इंसुलिन लेने में प्रयोग होने वाले पेन की निर्माता कम्पनी को बदलते न रहें। हमेशा एक ही कम्पनी के पेन का प्रयोग करें।
समय से करें हाइपरग्लाइसेमिया का इलाज
डॉ. अनुज महेश्वरी ने हाइपरग्लाइसेमिया की समस्या पर प्रकाश डाला। उच्च रक्त शर्करा का ही बिगड़ा हुआ स्वरूप हाइपरग्लाइसेमिया है। डायबिटीज के इलाज को छोड़ देना भी इस रोग का एक बड़ा कारण है। उन्होंने बताया कि अगर हाइपरग्लाइसेमिया हुआ है तो उसका समय से इलाज कराएं। इलाज न कराने पर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसमें आंखें, गुर्दे, नसें और हृदय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। डॉ. अनुज ने बताया कि हाइपरग्लेसेमिया की पहचान आसानी से नहीं हो पाती है। इसके लक्षण आने में कई हफ्ते लग जाते हैं। जिन लोगों को लम्बे समय से टाइप 2 मधुमेह है उन्हें इसका खतरा अधिक होता है। उन्होंने बताया कि जल्दी पेशाब आना, प्यास बढऩा, धुंधला दिखाई देना, कमजोरी या बेवजह थकावट इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग में रक्त और मूत्र में कीटोन नामक विषैले कैमिकल बनने लगते हैं। इसे कीटोएसिडोसिस कहा जाता है। उन्होंने कहा कि डायबिटीज का पता चलने पर ही इलाज शुरू कर दें। देरी होने पर अगर डायबिटीज का लेवल अधिक हो गया है।