लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में आर्थो डिजीज से पीड़ित बच्चों को और उच्चस्तरीय का इलाज मिल सकेगा। एक्सीडेंट में फ्रैक्चर आदि के बच्चों के लिए अलग से वार्ड बनाया जाएगा। ट्रॉमा सेंटर के सामने चार मंजिला डायग्नोस्टिक भवन बनेगा। इसमें एक फ्लोर पर पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक्स ट्रॉमा सेंटर बनेगा। इसमें आर्थो से जुड़ी बीमारी से पीड़ित बच्चों का 24 घंटे इलाज मिल सकेगा। यहां पर इमरजेंसी में सर्जरी की भी सुविधा होगी। यह बात केजीएमयू कुलपति पद्मश्री डॉ. सोनिया नित्यानंद ने बृहस्पतिवार को शताब्दी फेज-2 के प्रेक्षागृह में पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक्स विभाग के पहले स्थापना दिवस समारोह में कही।
कु लपति पद्मश्री डॉ. सोनिया नित्यानंद ने कहा कि ट्रॉमा सेंटर के सामने डायग्नोस्टिक भवन के फ्लोर पर पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक्स ट्रॉमा में 20 बिस्तर होंगे। इमरजेंसी में हड्डी से जुड़ी बीमारी लेकर आने वाले बच्चों को तत्काल इलाज दिया जाएगा। एक्सरे, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड व पैथोलॉजी से जुड़ी जांचें भी यही पर होंगी। इससे बच्चे को लेकर एक से दूसरे विभाग परिक्रमा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। दो ऑपरेशन थिएटर के साथ पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड होगा। अभी ट्रॉमा सेंटर में पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक्स यूनिट में बच्चे भर्ती कर इलाज किया जा रहा है।
भोपाल एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने कहा कि बच्चों में जन्मजात हड्डी से जुड़ी डिजीज बढ़ रही हैं। सही समय पर इलाज से बीमारी को आसानी से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि बच्चों की बोन साफ्ट होती है। इस लिए प्लास्टर आदि से बच्चों का पैर सीधा किया जा सकता है। देरी होने पर सर्जरी की करना पड़ता है।
पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक्स विभाग के प्रमुख डॉ. विकास वर्मा ने विभाग की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि बीते साल लगभग 18 हजार मरीज ओपीडी में देखे गए। प्रतिदन पांच से छह बच्चों की सर्जरी की जा रही है। उन्होंने कहा कि बोन से जुड़ी जन्मजात बीमारियों के साथ अधिक बच्चे आ रहे हैं। इसमें क्लब फुट, फ्रैक्चर, डीडीएच आदि दूसरी बीमारी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि विभाग में एमसीएच की स्टडी हो रही है। इससे विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार करने में सहायता मिल रही है।