ग़ज़ल : आखिर क्यूँ न धड़के दिल ख्वाबों के सीनों का

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आखिर क्यूँ न धड़के दिल ख्वाबों के सीनों का

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छलकता नूर है वो दिल के आब गीनों का

उठती है दिल में जब मौजे उसके ख़यालों की

रहता नहीं ठिकाना फिर होश के सफ़ीनों का .

– दिलीप मेवाड़ा

[box type=”info” fontsize=”16″]हर किसी में कवि छुपा होता है। कोई बाथरुम सिंगर होता है तो शब्दो की रचना कापी पर उकेर देता है। शब्द जब कविता/ शायरी बन जाते है तो उसे अभिव्यक्त करने के लिए मंच भी चाहिये होता है ऐसी रचनाकारों को हम एक मंच दे रहे है। आप अपनी कविता/शायरी/ गजल को बेहतर तरीके सजा कर  हमे भेज सकते है। हमारा theamplenews@gmail.com यह मेल है। हम उसे पोर्टल के माध्यम से लोगो के बीच पहुंचाकर आपकी प्रतिभा को एक मंच दे रहे है।[/box]

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