आखिर क्यूँ न धड़के दिल ख्वाबों के सीनों का
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छलकता नूर है वो दिल के आब गीनों का
उठती है दिल में जब मौजे उसके ख़यालों की
रहता नहीं ठिकाना फिर होश के सफ़ीनों का .
– दिलीप मेवाड़ा
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