लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में स्पाइन सर्जरी सेंटर जल्द शुरू किया जा सकता है। इससे स्पाइन के जटिल मरीजों का इलाज आसानी से आैर एक छत के नीचे किया जा सकता है। अगर देखा जाए तो देश में अभी तक कोई स्पेशल स्पाइन सेटंर नहीं है। यह जानकारी आर्थोपेडिक सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और स्पाइन सर्जरी यूनिट के प्रभारी डा. आरएन श्रीवास्तव ने दी। डा. श्रीवास्तव लाइव आपरेटिव स्पाइन कोर्स और कैडेवरिक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। कुलपति प्रोफेसर एमएलबी भट्ट ने कार्यशाला का उद्घाटन किया।
डा. श्रीवास्तव ने बताया कि उनके यहां ओपीडी में लगभग तीन सौ से ज्यादा मरीज आते हैं। इनमें जांच के दौरान 20 से 25 मरीजों में आप्टियोपोसोसिस की समस्या होती है। अगर देखा जाए तो यह महिलाओँ में 45 साल की उम्र से शुरू हो जाती है, जबकि पुरुषों में 60 साल के बाद शुरू होती है। इस बीमारी के ठीक करने के लिए अब स्पाइन के प्रभावित हिस्से में विशेष प्रकार का पदार्थ भरने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। कार्यशाला के दौरान चार मरीजों की सर्जरी भी की गई। इसमें मुरारी लाल (64) की आप्टियोपोरोटिक फैक्चर की सीमेंट भरने पर आधारित सर्जरी, हारून (11) की इडियोपैथिक स्कोलियोसिस, ज्ञानवती (19) की डिकंप्रेशन और मानसी (14) की ट्रांस फारैनिवलन लंबर सर्जरी की गई।
यूएसए से आये डा. दिलीप सेन गुप्ता ने कहा कि आस्पियोपोरोसिस के मरीज को शारीरिक सक्रियता बनाए रखने की जरूरत होती है। शरीर की निष्क्रियता उसकी बीमारी को बढ़ा देती है। अगर देखा जाए तो सीमेंट भरने वाली तकनीक भी उन्हींं मरीजों में ज्यादा कारगर होती है, जो सक्रिय रहने की कोशिश करते हैं। नयी दिल्ली से आये डा. अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया कि कूबड़ के मर्ज को मिलने या होने पर इसको नजर अंदाज किया जाता है। अगर बचपन में ही इसका इलाज कराया जाए तो सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है। किसी मरीज में सर्जरी की आवश्यकता हुई तो काफी सरलता से उसे ठीक किया जा सकता है। मरीज की उम्र बीतने के साथ ही इसका इलाज खर्चीला और कठिन हो जाता है।
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