न्यूज। लम्बे शोध के बाद वैज्ञानिकों ने कृत्रिम मेधा वाले एक ऐसे उपकरण का विकास करने में सफलता हासिल की है, जिसकी सहायता से यह पता किया जा सकेगा कि शल्य चिकित्सा के पश्चात रोगी के जीवन को प्रभावित करने वाला संक्रमण होने का खतरा कितना है। स्टैफिलोकोकस एपिडर्मिडिस एक ऐसा जीवाणु होता है जो स्वस्थ मनुष्य के शरीर की त्वचा में होता है आैर साथ ही यह गंभीर संक्रमण का भी विशिष्ट रुाोत है। यह कूल्हा बदलने जैसी शल्य चिकित्सा या फिर शरीर में डाले जाने वाले किसी उपकरण के साथ अधिक सक्रिय हो सकता है।
यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि क्या यह बाहरी त्वचा की पर्त (एस एपीडर्मिस) के सभी सदस्य किसी संक्रमण फैलाने में सक्षम हैं या फिर इनमें से कुछ में ऐसा कर सकने की प्रवृत्ति है कि वे गहरे ऊतकों या रक्त प्रवाह में शामिल हो सके।
आलटो विश्वविद्यालय आैर फिनलैंड की हेलसिंकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने संयुक्त अध्ययन में जीनोम आैर इन जीवाणुओं के विशिष्ट संक्रमणरोधी गुणों को मापन किया। वे इसके मशीनी अधिगम का उपयोग कर किसी एक जीवाणु से जीवन के लिए खतरनाक संक्रमण की आशंकाओं की सफलतापूर्वक पूर्वसूचना देने में सक्षम हुए। इस अनुसंधान के निष्कर्ष नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुये हैं। इससे भविष्य की नई तकनीक के लिए दरवाजे खुल गए हैं जहां किसी मनुष्य में शल्य चिकित्सा के पश्चात संक्रमण की जानकारी हासिल हो सकेगी।
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