लखनऊ। दुनिया में सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) फेफड़े की यह बीमारी मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। देश में लगभग 9.5 वर्ष इस बीमारी के कारण होती है, परन्तु अब स्पाईरोमीटर से जांच करके इसकी नाम पहचान की जा सकती है। यह बात रेस्पिरेटरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉबी पी सिंह ने सीओपीडी बीमारी की जागरूकता पर आयोजित गोष्ठी में कही।
डा. सिंह ने कहा कि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) में सांस लेने में लगातार परेशानी होती है और फेफड़े में हवा का प्रवाह सीमित हो जाता है। सीओपीडी के धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी होने के कारण इसके शुरुआती लक्षण अक्सर नजरंदाज हो जाते हैं। लक्षण सामने आने तक यह बीमारी काफी गंभीर रूप ले चुकी है। उन्होंने बताया कि बीमारी के शुरुआती लक्षणों का अनुभव करने वाले मरीजों के लिए इलाज के पहले चरण में स्पाईरोमीटर से जांच महत्वपूर्ण है। इससे सीओपीडी की नाम पहचान की जा सकती है।
विशेषज्ञ डॉ. ए.के. सिंह ने कहा कि लंग फैंटेसी टेस्ट, विशेष रूप से स्पायरोमीट्री टेस्ट करने से सीओपीडी के उपचार में होने वाले विलंब से बचा जा सकता है। बीमारी का समय पर इलाज शुरू करके इसे गंभीर बनने से रोक जा सकता है। इलाज के लिए आए मरीज जो कि लगातार सांस की वजह से परेशान हो रहे हैं। उन्हें स्पैरोमीट्री परीक्षण से पहचान की जा सकती है। सांस की बीमारियों के लक्षण किसी के भी नियंत्रण में नहीं होते, लेकिन सतर्क व जागरुक बने रहने के समय पर निदान की पहचान की जा सकती है। उन्होंने कहा कि नई तकनीक के स्पायरोमीटर को अब कहीं भी ले जाया जा सकता है और काफी लोगों का कैम्प हटाया जा सकता है।