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‘होप-22 बांझपन और हाई रिस्क प्रेगनेंसी विषयक कार्यशाला में देश भर से आए विशेषज्ञों ने रखे विचार
लखनऊ। समय पर आईवीएफ उपचार और आईवीएफ विशेषज्ञ का चयन बांझपन से निजात दिलाने का सबसे सटीक उपाय है। आईवीएफ विशेषज्ञ और अजंता अस्पताल और आईवीएफ केंद्र की निदेशक डॉ गीता खन्ना का दावा है कि उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था को संभालना बड़ी चुनौती है। आज आईवीएफ एक ज्ञात तकनीक है, लेकिन समय पर आईवीएफ उपचार और आईवीएफ विशेषज्ञ का चयन और देखभाल के बाद समय की जरूरत है। वे शहर के होटल में रविवार को आयोजित एक शैक्षणिक सत्र ‘होप-22-बांझपन और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था’ को संबोधित कर रही थीं।
उन्होंने कहा कि निदान और उपचार की योजना बनाने के लिए हर बांझ रोगी को कम से कम समय में न्यूनतम संभव परीक्षणों के अधीन किया जाना चाहिए क्योंकि जोड़े की बढ़ती उम्र सफलता का एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्धारक है। डिम्बग्रंथि प्रोटोकॉल का सावधानीपूर्वक चयन और “प्रोजेस्टेरोन प्राइमेड ओव्यूलेशन” का उपयोग कम लागत वाले आईवीएफ में योगदान देता है, जो सभी के लिए बजट के अंदर रहता है। आईवीएफ-आईसीएसआई में उपयोग किए जाने वाली नई तकनीकों का उपयोग करके और शुक्राणु डीएनए विखंडन को कम करने के लिए तनाव को कम करके बेहतर बनाया जा सकता है। अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (IUI) अभी भी गर्भावस्था प्राप्त करने में अपना महत्व रखता है और इसे जरूरतमंद व्यक्ति IVF के रूप में भी जाना जाता है।
बार-बार आईवीएफ विफलता या बार-बार गर्भपात होने पर प्रतिरक्षात्मक कारणों के लिए खुद की जांच करवाएं। सत्र के दौरान चर्चा की गई िक गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में एक कुशल सोनोलॉजिस्ट और भ्रूण चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा अल्ट्रासाउंड टेस्ट गर्भावस्था को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
विशेषज्ञों ने उल्लेख किया कि ये मामले एक बड़ी चुनौती हैं और इन्हें बचाने के लिए कुशल देखभाल की आवश्यकता है। दिन भर चले सत्र के दौरान देश भर के 300 से अधिक स्त्री रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया।
इस दौरान प्रमुख वक्ताओं में गंगा राम अस्पताल की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ.आभा मजूमदार, इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. केडी नायर, महासचिव डॉ.सुरवीन घूमन, डॉ. पंकज तलवार, डॉ. कुलदीप जैन, डॉ. कुलदीप सिंह, दिल्ली से प्रोफेसर सोनिया मलिक, त्रिची से डॉ. रमानी देवी, पुणे से डॉ. गिरिजा वाघ, नागपुर से डॉ. सुषमा देशमुख, जानी मानी शिक्षिका प्रोफेसर चंद्रावती और प्रोफेसर मीरा अग्निहोत्री शामिल रहीं। इस अकादमिक सत्र को आईएफएस, लॉग्स का सहयोग हासिल रहा और आईसीओजी का समर्थन भी जिसमें सभी प्रतिभागियों का बांझ रोगियों को गुणवत्ता और नवीनतम देखभाल प्रदान करने में ज्ञानवर्धन हुआ।