इसमें हवा की क्वॉलिटी (गुणवत्ता) की जांच होगी। ताकि प्रदूषण के संबंध में गहन जानकारी मिल सके। इसके लिए शताब्दी फेज-2 की छत पर मशीनें लगाई जाएंगी। इन मशीनों की मदद से एयर क्वॉलिटी इंडेक्श तैयार किया जाएगा। मशीन से आने वाले नतीजों को अस्पताल के बाहर इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड पर प्रदर्शित किया जाएगा। ताकि लोग उसे देखकर संजीदा हो जाएं। वहीं ओपीडी में आने वाले मरीजों को उस दिन वातावरण में मौजूद प्रदूषण के प्रति आगाह किया जाएगा।
इस बारे में डॉ. अजय वर्मा ने बताया कि जहां खेती-किसानी भी होती है। फूलों से निकलने वाले परागकण भी वातावरण में उड़कर आते हैं। यह परागकरण सांस के मरीजों के साथ-साथ मरीजों के लिए भी घातक है। परागकण सांस के लिए जैसे ही फेफड़े तक पहुंचता है, एलर्जी उभर आती है। इसका पता लगाने के लिए पॉलेन सैम्पल एकत्र करने की मशीन लगाई जाएगी। वहीं फंगल इनफेक्शन का पता लगाने के लिए छोटी मशीनें भी खरीदी जाएगी। उन्होंने बताया कि घरों में सीलन की वजह से भी फंगल इनफेक्शन हो जाता है। छोटी मशीने भी खरीदी जाएंगी। इन मशीनों को आम लोगों के घरों में जांच के लिए भेजी जा सकेंगी। मशीन की मदद से दो से तीन दिन में नमूने एकत्र किए जा सकेंगे। फंगल इनफेक्शन की वजह से भी सांस की बीमारी ऊभर आती है।
डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि लोगों को तमाम तरह की वस्तुओं से एलर्जी हो रही है। इसमें खाना, तेल, साबुन, धूल, गर्दा समेत दूसरी वस्तुएं शामिल हैं। मरीजों को एलर्जी का बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के लिए इम्यूनोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाएगा। यह इम्यूनोथेरेपी केजीएमयू में तैयार होगी। जांच के बाद मरीजों के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।
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