लखनऊ। साहेब रात भर जांच के लिए दौड़ाते रहे आैर बारह घंटे बाद सुबह जब भर्ती किया तब तक उसकी हालत बुरी बिगड़ गयी थी, इलाज ठीक से शुरू होता तब तक बिटिया मर गयी रहे… बिलखते हुए मां रुकमीणा ट्रामा सेंटर के बाहर रिश्तेदारों को बताते हुए बेहोश हो जाती है। यह बानगी है किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर इमरजेंसी की। बुधवार रात कानपुर के हैलेट अस्पताल से रेफर की गई युवती भर्ती के लिए 12 घंटे तक स्ट्रेचर पर इलाज का इंतजार करती रही। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर जांच के नाम पर उसे रात भर दौड़ाते रहे। बृहस्पतिवार सुबह दस बजे मरीज को मेडिसिन विभाग में भर्ती किया गया।
यहां पर डाक्टरों ने देखते ही हालत गंभीर बताकर इलाज शुरू किया था कि उसकी मौत हो गयी। परिजनों का आरोप है कि अगर रात में सही इलाज मिला हो तो वह जिंदा रह सकती थी। घरवालों ने लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रॉमा गेट पर हंगामा किया, परन्तु सुरक्षागार्डो ने डपट कर भगा दिया। उन्नाव के शुक्लागंज की रहने वाली गुड़ियां (22) को चार दिन पहले पेट में दर्द परेशान हुई तो परिजनों ने कानपुर हैलेट अस्पताल में भर्ती करा कर इलाज कराना शुरू किया। यहां पर बुधवार रात उसे डॉक्टरों ने हालत गंभीर बताते हुए लखनऊ के केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया। अपने रिश्तेदारों के संग मां रुकमीणा उसे लेकर रात करीब 11 बजे ट्रॉमा सेंटर लाई।
इमरजेंसी कैजुल्टी में डॉक्टरों ने जांच कराने के लिए भेजा, जांच कराने में करीब दो घंटे बीत गए। जांच रिपोर्ट आने बाद रात करीब दो बजे मरीज को मेडसिन विभाग रेफर किया गया। वहां डॉक्टरों ने ठंड पर उसे वार्ड के बाहर स्ट्रेचर पर लिटाए रखे। उनका आरोप है कि सुबह तक डॉक्टरों ने उसे नहीं देखा। इस दौरान मरीज की हालत बिगड़ने लगी। सुबह वार्ड में भर्ती मरीजों को शिफ्ट करने बाद उसे वार्ड के अंदर लाया गया। जहां उपचार दौरान उसकी मौत हो गई। मां का आरोप है कि डॉक्टरों के इलाज में हुई कोताही से उनकी बेटी की जान चली गई। पहले मरीज को भर्ती के लिए 12 घंटे इंतजार करना पड़ा। भर्ती होने बाद जांच-दवा के नाम पर करीब 12 हजार रुपए भी खर्च करा दिए गए। उनका आरोप है कि जांच के साथ ही अगर इलाज भी शुरू कर दिया गया होता तो शायद उनकी बेटी बच सकती थी। मौत से गुस्साएं तीमारदार ट्रॉमा गेट पर शव रखकर हंगामा कर रहे थे। गार्डो ने किसी तरह उन्हें डपट कर शांत कराकर वापस भेजा।
केजीएमयू प्रवक्ता डा. संतोष का कहना है कि हर मरीज को प्राथमिकता के आधार पर उपचार दिया जाता है। बिस्तर न खाली होने पर डॉक्टर स्ट्रेचर पर मरीज को उपचार देने बाद संबंधित अस्पताल रेफर करते हैं। आरोप है कि भर्ती देरी से क्यों हुई, इसकी जांच कराई जाएगी।
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