सरकार के 2030 तक एड्स उन्मूलन के वादे को पूरा करने की दिशा में सराहनीय प्रगति तो हुई है परन्तु नए एचआईवी संक्रमण दर में वांछित गिरावट नहीं आई है जिससे कि आगामी 133 माह में एड्स उन्मूलन का स्वप्न साकार हो सके. इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी की संचालन समिति में एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के प्रतिनिधि और एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि “2020 तक, विश्व में नए एचआईवी संक्रमण दर और एड्स मृत्यु दर को 5 लाख से कम करने के लक्ष्य से हम अभी दूर हैं. 2018 में नए 17 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हुए और 7.7 लाख लोग एड्स से मृत. दुनिया में 3.79 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं. भारत में अनुमानित है कि 21.4 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं, जिनमें से 13.45 लाख लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा प्राप्त हो रही है. एक साल में 88,000 नए लोग एचआईवी से संक्रमित हुए और 69,000 लोग एड्स से मृत.”
चेन्नई के वोलंटरी हेल्थ सर्विसेज़ अस्पताल के संक्रामक रोग केंद्र के निदेशक और एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के महासचिव डॉ एन कुमारसामी ने कहा कि “भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (UNAIDS) दोनों के अनुसार, 2020 तक एचआईवी का 90-90-90 का लक्ष्य पूरा करना है: 2020 तक 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को यह पता हो कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटीरेट्रोवायरल दवा (एआरटी) मिल रही हो; और जिन लोगों को एआरटी दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में ‘वायरल लोड’ नगण्य हो. वायरल लोड नगण्य रहेगा तो एचआईवी संक्रमण के फैलने का खतरा भी नगण्य रहेगा, और व्यक्ति स्वस्थ रहेगा.”
डॉ गिलाडा ने बताया कि विश्व में 79% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को एचआईवी टेस्ट सेवा मिली, जिनमें से 62% को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है और 53% लोगों में ‘वायरल लोड’ नगण्य है. भारत में 79% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को टेस्ट सेवा मिली, जिनमें से 71% लोगों को एंटीरेट्रोवायरल दवा भी मिल रही है. 90-90-90 के लक्ष्य की ओर प्रगति अधिक रफ़्तार से होनी चाहिए क्योंकि सिर्फ 13 माह शेष हैं.
डॉ गिलाडा ने कहा कि आज एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित अनेक नीति और कार्यक्रम हमें ज्ञात हैं। हमें यह भी पता है कि कैसे एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति भी एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकते हैं। परन्तु जमीनी हकीकत भिन्न है. यदि हम प्रमाणित नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यसाधकता के साथ लागू नहीं करेंगे तो 2030 तक एड्स-मुक्त कैसे होंगे?
एचआईवी पॉजिटिव लोगों में सबसे बड़ा मृत्यु का कारण क्यों हैं टीबी?
टीबी से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. तब क्यों एचआईवी पॉजिटिव लोगों में टीबी सबसे बड़ा मृत्यु का कारण बना हुआ है?
सीएनएस निदेशिका शोभा शुक्ला ने बताया कि 2018 में 15 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 2.5 लाख लोग एचआईवी से भी संक्रमित थे (2017 में 16 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 3 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे).
हर नया टीबी रोगी, पूर्व में लेटेंट टीबी से संक्रमित हुआ होता है। और हर नया लेटेंट टीबी से संक्रमित रोगी इस बात की पुष्टि करता है कि संक्रमण नियंत्रण निष्फल था जिसके कारणवश एक टीबी रोगी से टीबी बैक्टीरिया एक असंक्रमित व्यक्ति तक फैला।
लेटेंट टीबी, यानि कि, व्यक्ति में टीबी बैकटीरिया तो है पर रोग नहीं उत्पन्न कर रहा है। इन लेटेंट टीबी से संक्रमित लोगों में से कुछ को टीबी रोग होने का ख़तरा रहता है। जिन लोगों को लेटेंट टीबी के साथ-साथ एचआईवी, मधुमेह, तम्बाकू धूम्रपान का नशा, या अन्य ख़तरा बढ़ाने वाले कारण भी होते हैं, उन लोगों में लेटेंट टीबी के टीबी रोग में परिवर्तित होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
दुनिया की एक-चौथाई आबादी को लेटेंट टीबी है। पिछले 60 साल से अधिक समय से लेटेंट टीबी के सफ़ल उपचार हमें ज्ञात है पर यह सभी संक्रमित लोगों को मुहैया नहीं करवाया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2018 मार्गनिर्देशिका के अनुसार, लेटेन्ट टीबी उपचार हर एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को मिले, फेफड़े के टीबी रोगी, जिसकी पक्की जांच हुई है, उनके हर परिवार सदस्य को मिले, और डायलिसिस आदि करवा रहे लोगों को भी दिया जाए.
संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक में सरकारों द्वारा पारित लेटेन्ट टीबी लक्ष्य इस प्रकार हैं: 2018-2022 तक 3 करोड़ को लेटेन्ट टीबी इलाज मिले (इनमें 60 लाख एचआईवी संक्रमित लोग हैं, और 2.4 करोड़ फेफड़े के टीबी रोगी – जिनकी पक्की जांच हुई है – के परिवार सदस्य (40 लाख 5 साल से कम उम्र के बच्चे और 2 करोड़ अन्य परिवार जन).
2018 में 65 देशों में लेटेन्ट टीबी इलाज 18 लाख एचआईवी से संक्रमित लोगों को प्रदान किया गया (2017 में 10 लाख एचआईवी से संक्रमित लोगों को लेटेन्ट टीबी इलाज मिला था). परन्तु वैश्विक लेटेन्ट टीबी इलाज का 61% तो सिर्फ एक ही देश – दक्षिण अफ्रीका – में प्रदान किया गया.
भारत में 2018 में, नए एचआईवी संक्रमित चिन्हित हुए लोगों (1.75 लाख) में से, सिर्फ 17% को लेटेन्ट टीबी इलाज मिल पाया (29,214).
सीएनएस निदेशिका शोभा शुक्ला ने कहा कि “यह अत्यंत आवश्यक है कि एचआईवी से संक्रमित सभी लोगों को उनके संक्रमण के बारे में जानकारी हो, उन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हों, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे तथा वह टीबी से बचें, अन्यथा एचआईवी रोकधाम में जो प्रगति हुई है वो पलट सकती है, जो नि:संदेह अवांछनीय होगा.”
बॉबी रमाकांत – सीएनएस
(विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के संपादक मंडल में हैं और आशा परिवार से जुड़े हैं. ट्विटर @bobbyramakant. वेबसाइट www.citizen-news.org)
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